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________________ 144 महावीर ने कहा- निमित्त और उपादान, परिस्थिति और अन्तर्जगत्, दोनों को तोड़कर अलग-अलग करके मत देखो। कुछ लोग सारा भार परिस्थिति पर ही डाल देते हैं। परिस्थिति नहीं बदलेगी तो समस्या का समाधान नहीं होगा। दूसरी ओर जो अध्यात्मवादी लोग हैं, उनका मत है- अन्तर्जगत् में सुधार नहीं होगा, उपादान नहीं बदलेगा तो समस्या का समाधान नहीं होगा। ये दोनों ही एकांगी दृष्टिकोण हैं। निमित्त और उपादान दोनों जुड़े हुए . हैं। उपादान शक्तिशाली और निमित्त प्रतिकूल है तो उपादान कुछ नहीं कर पाएगा। जो घटित होता है इन दोनों (निमित्त उपादान के) के योग से होता है। समग्र परिवर्तन के लिए दोनों पर ध्यान देना अपेक्षित है। अहिंसा-प्रशिक्षण के आयामः स्वर्ण जयन्ती गौरव-ग्रन्थ जहाँ कुछ विद्वान मानस-परिवर्तन, संरचनात्मक परिवर्तन, व्यक्तिवादी प्रशिक्षण एवं सामूहिक प्रशिक्षण को एकल रूप में रेखांकित करते हैं, वहीं कुछ महापुरुषों की अवधारणा एक समेकित प्रारूप के प्रस्तुतीकरण पर बल देती है। उनके द्वारा विकसित अहिंसा प्रशिक्षण की चतुरायामी (Four Steps) अवधारणा मात्र व्यक्ति या मात्र समाज तक नहीं पहुँचती है पर दोनों को एक साथ समाहित करती है। समग्रता के इन चार आयामों में (1) हृदय परिवर्तन, (2) दृष्टिकोण परिवर्तन, (3) जीवन शैली परिवर्तन एवं तद्नुरूप, (4) संरचनात्मक परिवर्तन (व्यवस्था परिवर्तन ) - सम्मिलित हैं। 1. हृदय परिवर्तन- अहिंसा प्रशिक्षण का प्रथम आयाम है- हृदय परिवर्तन । हृदय परिवर्तन का अर्थ है भाव-परिवर्तन। भावों का उद्गम स्थल है- मस्तिष्क का एक भाग, लिम्बिक संस्थान । अतः इसे मस्तिष्कीय प्रशिक्षण कहा गया है। हृदय परिवर्तन का पहला सूत्र हैनिषेधात्मक भावों के परिवर्तन का प्रशिक्षण । निषेधात्मक भावों का उद्दीपन हमारे शारीरिक अस्वास्थ्य के कारण भी होता है। अतः हृदय परिवर्तन का दूसरा सूत्र है- शारीरिक स्वास्थ्य में मिताहार का प्रशिक्षण। निषेधात्मक भावों (संवेगों) के परिवर्तन के लिए निम्ननिर्दिष्ट सिद्धान्त-सूत्रों का प्रशिक्षण आवश्यक है: हिंसा के हेतु परिणाम लोभ अधिकार की मनोवृत्ति भय 1. 2. Jain Education International शस्त्र निर्माण और शस्त्र प्रयोग प्रतिरोध की मनोवृत्ति कलहपूर्ण सामुदायिक जीवन घृणा, जातिभेद के कारण छुआछूत शोषण, हत्या 3. वैर-विरोध 4. क्रोध 5. अहंकार 6. क्रूरता असहिष्णुता 7. साम्प्रदायिक झगड़ा ये संवेग (निषेधात्मक भाव) व्यक्ति को हिंसक बनाते हैं। हृदय परिवर्तन का For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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