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जैनधर्म सम्मत अहिंसा का प्रशिक्षण
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को भी बताया; मात्र वाणी से नहीं, जीवन से। उनके अनुसार सच्चा सुख और शान्ति प्राप्त करने का एकमात्र उपाय-स्याद्वाद शैली में अभिव्यक्त अनेकान्तात्मक वस्तु-स्वरूप तथा अहिंसात्मक जीवन शैली है। इस अहिंसा का प्रशिक्षण सम्भव है। अहिंसा-प्रशिक्षण का स्वरूपः प्रशिक्षण के आधारः - अहिंसा-प्रशिक्षण का आधार है- हिंसा के बीजों को प्रसुप्त बनाकर अहिंसा के बीजों को अंकुरित करना। इसके लिए प्रशिक्षण आवश्यक है। अहिंसा प्रशिक्षण की प्रक्रिया के दो चरण हैं:
1. सैद्धान्तिक बोध, 2. प्रायोगिक अभ्यास।
अहिंसा के सैद्धान्तिक बोध के अन्तर्गत हिंसा के कारण, परिणाम एवं अहिंसा के सम्वर्द्धन के उपाय का प्रशिक्षण समाविष्ट है। जिससे व्यक्ति की अवधारणाओं में परिष्कार का अवसर मिले और उसके साथ-साथ प्रायोगिक प्रशिक्षण भी चले। हिंसा की जड़ः (हिंसा के मूल कारण):
हिंसा के कारण बाहर परिवेश में भी हैं और अन्दर हमारी वृत्तियों में भी। कुछ कारण व्यक्ति में हैं, और कुछ समाज में हैं। हिंसा का मूल कारण, उपादान व्यक्ति में है। उसको उद्दीप्त करने वाले निमित्त कारण परिवेश में, समाज में हैं। हिंसा भड़काने वाले मूल कारणः
आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक कारण हिंसा को प्रोत्साहन देते हैं। विषमता, बेरोजगारी, शोषण, दरिद्रता, अतिभाव, विलासिता आदि ऐसे आर्थिक कारण हैं, निमित्त हैं, जिनसे व्यक्ति में निहित उपादान को उत्तेजना मिलती है। जो हिंसा भड़काने में निमित्त बनते
हिंसा को भड़काने में सामाजिक विकृतियाँ, वर्णभेद, अस्पृश्यता, विषम परिस्थितियाँ, कुरूढ़ियाँ, दासता आदि का भी बहुत बड़ा हाथ रहता है।
राजनीति में सैद्धान्तिक आतंकवाद तथा व्यावसायिक आतंकवाद हिंसा की आग में घी डालने का काम करते हैं। साम्प्रदायिक कट्टरता भी हिंसा भड़काती है। ये बाह्य कारण व्यक्ति के आन्तरिक कारणों को जगाते हैं। व्यक्ति के भीतर हिंसा के अनेक कारण हैं। उसमें मुख्य हैं- व्यक्ति की वृत्तियाँ। निषेधात्मक भाव, क्रूरता, भय, ईर्ष्या, क्रोध, अहंकार, लोभ आदि वृत्तियाँ हिंसा को जन्म देती हैं।
व्यक्ति में हिंसा का दूसरा कारण है- अपने मत का दुराग्रह एवं स्वयं को ही सही समझने की दृष्टि। अपने से भिन्न मत वाले को गलत समझने का दृष्टिकोण अन्ततः हिंसा को प्रोत्साहित करता है, हिंसा को पोषण देता है।
___व्यक्ति की जीवन शैली का भी हिंसा से बहुत गहरा सम्बन्ध है। सुविधावादी, असंयमित, भोगप्रधान जीवन शैली हिंसा को उत्तेजित करती है। हिंसा निवारण के उपाय:
हिंसा और अहिंसा दोनों के बीज मनुष्य के भीतर हैं। ऐसी स्थिति में वातावरण पर ध्यान देना बहुत जरूरी है; क्योंकि वही सबसे पहले हमारे सामने आता है। भगवान
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