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________________ 140 स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ संगठन (International Vegetarian Union) का एक सम्मेलन हुआ। उसमें चेन्नई के श्री सुरेन्द्र भाई मेहता अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। वहां पर 200 अध्यापक / अध्यापिकाएं भी आई थीं। हमने उनसे पूछा कि हमें शाकाहार के प्रचार के लिए क्या करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आपको विद्यार्थियों में वैज्ञानिक ढंग से प्रचार करना होगा। बाद में उनसे परामर्श करके हम लोगों ने एक योजना बनाई जिसे करुणा क्लब कहते हैं तथा एक संस्था करुणा अंतर्राष्ट्रीय की स्थापना की। इसमें हम अध्यापक एवं विद्यार्थी प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करते हैं तथा निरंतर कार्यशालाएं, सेमिनार एवं प्रतिवर्ष राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करते हैं। हमें अनुभव हुआ कि जीवदया एवं शाकाहार के प्रचार का यह एक प्रभावक कार्यक्रम है तथा बाल्यावस्था में, जब विद्यार्थियों का मस्तिष्क अपरिपक्व रहता है, उनको संस्कारित करना सरल होता है। हम करुणा की कहानियां, नाटक आदि पर विद्यार्थियों को निःशुल्क साहित्य वितरित करते हैं। इन तेरह वर्षों में देश के 1500 विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में करुणा क्लबें स्थापित हो गई हैं जो जीवदया, अहिंसा, करुणा, पर्यावरण रक्षा, पशु क्रूरता निवारण एवं शाकाहार का प्रभावक कार्यक्रम कर रही हैं। ये क्लबें व्यवहारिक कार्यक्रमों एवं गतिविधियों के द्वारा विद्यार्थियों के हृदय को परिवर्तित कर रही हैं। आज 1 लाख से अधिक विद्यार्थी और अध्यापक शाकाहारी बन चके हैं। हमने विद्यार्थियों से चमडे के जतों का उपयोग नहीं करने की अपील की। 95 विद्यालयों के 1 लाख से अधिक विद्यार्थियों ने चमड़े के जूते पहनना बंद कर दिया है। _आज सबसे अधिक विद्यार्थियों को संस्कारित करने की आवश्यकता है। हमें उन्हें वैज्ञानिक ढंग से जैन धर्म का तत्वज्ञान समझाना होगा। दिवाकर प्रकाशन, आगरा ने जैन धर्म की कहानियों की 200 पुस्तकें हिन्दी एवं अंग्रेजी में प्रकाशित की है। उन्होंने पच्चीस बोल पर एवं जैन तत्वज्ञान पर अंग्रेजी एवं हिन्दी में चित्रात्मक सुंदर पुस्तकें प्रकाशित की हैं। उनके द्वारा जैन धर्म को रोचकता से समझाया जा सकता है। इसी प्रकार पोस्टर, चार्ट, प्रश्नोत्तर एवं सी. डी. द्वारा भी प्रचार किया जाना चाहिए। आपको यह जानकर हर्ष होगा कि चेन्नई के मद्रास विश्वविद्यालय में जैन धर्म की उच्चस्तरीय पढ़ाई के लिए पिछले बीस वर्षों पूर्व जैन विद्या विभाग (Department of Jainology) स्थापित किया गया था हाँ एम. ए., एम. फिल. एवं पी-एच. डी. की उच्चस्तरीय कक्षाएं ली जाती हैं तथा शोध-कार्य भी होता है। इसी विभाग द्वारा समाज में प्राकृत भाषा की पढ़ाई भी होती है जिसमें पच्चास महिलाएं प्रतिमास भाग लेती हैं। डॉ. रामजीसिंह, जो जैन विद्या के तत्वज्ञ हैं, का कथन है कि जैन धर्म में 200 से अधिक सुंदर कथाएं हैं जिन्हें टी. वी. एवं सिनेमा में प्रदर्शित किया जा सकता है तथा उसका रामायण एवं महाभारत की तरह प्रचार किया जा सकता है। आज जैन विद्या पर शोध का मात्र एक विश्वविद्यालय लाडनूं में है। इस तरह के कई विश्वविद्यालयों की स्थापना की आवश्यकता है। आज जैन समाज की सामूहिक आवाज (Collective Voice) नहीं है। कभी हमारे समाज के संसद में 50 प्रतिनिधि थे, अब मात्र तीन हैं। हमारा संगठन कमजोर हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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