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आधुनिक युग में भगवान महावीर के जीवन-मूल्यों की प्रासंगिकता
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का प्रचार किया जाय। उन्होंने जिन मूल्यों के प्रचार की बात की, वे हैं1. सभी जीवों के प्रति सम्मान (Reverence for all forms of life) 2. सही प्रकार की शिक्षा (Right type of education) 3. परस्पर सहयोग द्वारा अहिंसा को व्यवहार में लाना। 4. लड़ाई-झगड़ों का शान्तिपूर्ण तरीकों से हल। 5. सभी राष्ट्रों में स्वतंत्रता, न्याय एवं लोकतंत्र की भावना का प्रचार। 6. राष्ट्रों के बीच जाति, वर्ण, रंग आदि का भेदभाव समाप्त करना एवं 7. मानवीय जीवन मूल्यों का प्रचार।
उपरोक्त सभी सुझाव भगवान महावीर के उपदेशों से साम्य रखते हैं तथा उनका पालन करने से विश्व में शान्ति, पारस्परिक प्रेम, सौहार्द तथा सद्भाव स्थापित हो सकता
अब मैं आपको एक प्रत्यक्ष उदाहरण जो श्रीमती मेनका गांधी के जीवन में घटित हुआ सुनाना चाहता हूँ। वे पीपल फॉर एनिमल्स संस्था चलाती हैं तथा उन्होंने पश-करता के विरुद्ध अभियान चलाया है। उन्होंने बताया कि एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने उनको अमेरिका आने का निमंत्रण दिया। वे मुम्बई से विमान में बैठी। थोड़ी देर में विमान परिचारिका ने उनको पूछा- "मैं भोजन ला रही हूँ। आप खाने में क्या पसंद करेंगी? शाकाहार या मांसाहार?" उन्होंने कहा- "मैं तो अण्डा खाना भी पसंद नहीं करती। मुझे तो शुद्ध शाकाहारी भोजन चाहिये।" परिचारिका ने पूछा- "क्या आप जैन हैं?" उन्होंने कहा कि मैं जैन तो नहीं हूँ पर जैन धर्म के नियम और सिद्धांत मुझे अच्छे लगते हैं, मैं उनका पालन करने का प्रयास करती हूँ। और फिर वे सोचने लगीं, कितना महान् है यह जैन धर्म। एक या दो दिन के त्याग से यह पहचान नहीं मिलती, ऐसी पहचान तो सदियों में मिलती है।
इसके आगे भी एक और घटना घटित हुई। वे अमेरिका पहुंची और उन्होंने एक सम्मेलन में भाग लिया। दोपहर को वे रेस्टोरेण्ट में भोजन कर रही थी। उसी समय एक नवयुवक भी उनकी टेबल पर भोजन करने आया। उसका व्यक्तित्व प्रभावशाली था। बातचीत से पता चला वह हरियाणा से आया है तथा जैन है। होटल के वेटर ने उस युवक से पूछा- "आप भोजन में क्या लेना पसंद करेंगे, शाकाहार या मांसाहार?" जैन युवक ने कहा - 'मांसाहार'। मेनका जी चौंक उठीं। उन्होंने पूछा - "आप जैन धर्मावलम्बी हैं, फिर मांसाहार कैसे?" युवक ने कहा- "मैंने अमेरिका से इंजिनियरिंग की। घर पर तो मांसाहार का प्रश्न ही नहीं है। यहां होस्टल में कभी-कभी लेने की आदत पड़ गई।" मेनकाजी ने उसे समझाया और कहा- "यह जो जैन धर्म की महानता बनी हुई है उसे बनाए रखो, उसे विकत मत करो।" उनकी बात सनकर उस युवक ने प्रतिज्ञा की कि मैं कभी भी मांसाहार नहीं करूंगा। यदि मुझे कोई उपदेश देता तो भी मैं नहीं छोड़ पाता, पर अब मैं समझ गया, अतः जीवनपर्यंत मांसाहार नहीं करूंगा।
शाकाहार का प्रचार करने के लिए चेन्नई में सन् 1995 में अंतर्राष्ट्रीय शाकाहार
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