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________________ 138 स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ आग तृप्त नहीं होती, हजारों नदियों से समुद्र तृप्त नहीं होता, वैसे ही मानव की आकांक्षाएं कभी भी तृप्त नहीं होती। असीमित परिग्रह एवं अनियंत्रित तृष्णाएं विषमता को पैदा करती हैं। अतः भगवान ने इच्छा परिमाण व्रत का विधान बताया। उन्होंने कहा कि हमें सर्जन के साथ विसर्जन का भाव समझना चाहिये। आज संसार में उपभोक्तावाद बढ़ रहा है। समृद्ध देशों में संसार की केवल 25 प्रतिशत आबादी रहती है, लेकिन उन्होंने पूरे संसार की सम्पत्ति का 80 प्रतिशत भाग हथिया लिया है। एक ओर विकसित देशों द्वारा अणु और परमाणु बमों तथा विनाशकारी हथियारों के निर्माण पर 80000 करोड़ डॉलर से अधिक प्रतिवर्ष खर्च हो रहे हैं, वहीं संसार के अविकसित देशों में करोड़ों व्यक्तियों को पीने का पानी दूभर है, प्राथमिक शाला के लिए पाठशालाएं नहीं है, स्वास्थ्य के लिए अस्पताल एवं डॉक्टर उपलब्ध नहीं है। इसलिए हमें 21वीं शताब्दी में अपरिग्रह को एक सामाजिक उत्तरदायित्व एवं चुनौती के रूप में देखना होगा। अनेकांत दृष्टि जैन दर्शन की मानवता को अनूठी देन है। यह मनुष्य को एक तरफा या एकांगी होने से बचाती है। यह वैचारिक धरातल पर समन्वय भावना को सशक्त करती है। भगवान महावीर ने अपने युग में 363 मत-मतान्तरों के बीच बढ़ती विषमता को सहिष्णुता एवं समन्वयवाद द्वारा हल किया। उन्होंने दूसरों के मत की निंदा एवं भर्त्सना नहीं की। उनकी मान्यता थी कि विचारों का आदान-प्रदान करो। प्रत्येक विचारधारा में सत्य क अंश है और मात्र अपनी, स्वयं की मान्यता ही एक मात्र सत्य नहीं है। विभिन्न मतों का आदर करते हुए उन्होंने विषमता, जातिवाद एवं ईश्वरवाद के विरुद्ध अहिंसक क्रांति का आह्वान किया। अनेकांत के माध्यम से उन्होंने प्रेम, मैत्री, समता, कारुण्य और समन्वय का संदेश दिया। अब हम भगवान महावीर के उपदेशों की प्रासंगिकता पर विचार करेंगे। आज विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ शान्ति स्थापित करने का कार्य कर रहा है। इसके घोषणा पत्र में लिखा है कि जिस प्रकार युद्ध का प्रारम्भ मनुष्य के मन में होता है, उसी प्रकार शान्ति की संरक्षा का कार्य भी मनुष्य के मन को प्रशिक्षित करके ही किया जा सकता है। इसी संस्था का एक अंग है- यूनेस्को (United Nations Educational, Social and Cultural Organisation) जो शिक्षा, समाज और संस्कृति के विकास का कार्य करती है। इस संस्था द्वारा विश्व में सर्वाधिक शान्ति का प्रचार करने वाले व्यक्ति को नोबल शान्ति पुरस्कार दिया जाता है। सन् 1901 से प्रारम्भ हुए इस पुरस्कार द्वारा अब तक 108 सर्वश्रेष्ठ व्यक्तियों को पुरस्कृत किया जा चुका है। हाल ही के वर्षों में जिन महत्वपूर्ण व्यक्तियों को सम्मानित किया गया उनमें मार्टिन लूथर किंग, हेनरी किसिंगर, मिखाइल गोरबाचेव, नेलसन मंडेला, यास्सर अराफलत, कोफी अन्नान, जिमि कार्टर, मदर टेरेसा एवं निर्मला देशपांडे का नाम सम्मिलित है। यूनेस्को ने सन् 2002 में विश्व शांति सम्मेलन का आयोजन किया तथा नोबल शान्ति पुरस्कार प्राप्त व्यक्तियों से पूछा कि विश्व में शान्ति और अहिंसा की स्थापना के लिए आपके क्या सुझाव हैं। उन व्यक्तियों ने कहा कि शान्ति की स्थापना के लिए आवश्यक है कि विद्यार्थियों के जीवन में बाल्यकाल से कुछ मूल्यों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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