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आधुनिक युग में भगवान महावीर के जीवन-मूल्यों की प्रासंगिकता
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बड़ी सुंदर परिभाषा दी। उन्होंने कहा
"जेण तच्चं विबुज्झेज्ज, जेण चित्तं णिरुज्झदि।
जेण अत्ता विसुज्झेज्ज, तं णाणं जिणसासणे।।" अर्थात् ज्ञान के अंतर्गत तीन बातें आती हैं- 1. जिससे तत्व का बोध होता है, 2. चित्त का निरोध होता है तथा 3. आत्मा विशुद्ध होती है, उसी को जिनशासन में ज्ञान कहा गया।
___ महावीर ने कर्मकाण्डों, अंधविश्वासों एवं धर्म में घुसपैठ कर बैठी हिंसक प्रवृत्तियों के विरुद्ध सशक्त आवाज बुलंद की। आचार्य विनोबा भावे ने लिखा है कि महावीर पहले धर्माचार्य थे जिन्होंने समाज की रूढ़ियों का भंजन कर नारियों को आदर और सम्मान का स्थान दिया। उनके धर्मसंघ में 36000 विदुषी प्रतिभासम्पन्न साध्वियाँ थीं।
तीर्थकर महावीर ने मुख्य रूप से तीन बातों का संदेश दिया- अहिंसा, अपरिग्रह एवं अनेकांत। इन तीनों की आज के युग में बहुत बड़ी आवश्यकता है। भगवान् महावीर ने अहिंसा पर सबसे अधिक जोर दिया। उन्होंने कहा- "किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करनी चाहिये" यही ज्ञानियों के ज्ञान का सार है। अहिंसा, समता, समस्त जीवों के प्रति आत्मवत् भाव- यही शाश्वत धर्म है। 'मित्ति मे सव्वभूएसु वेरं मझं न केणइ' के द्वारा उन्होंने संसार के सभी प्राणियों से मित्रता की बात कही।
अहिंसा के दो पक्ष हैं- सकारात्मक और नकारात्मक। हिंसा नहीं करना यह नकारात्मक पक्ष है। पर आचार्य अमितगति ने 'सामायिक पाठ' में अहिंसा का सकारात्मक पक्ष प्रस्तुत किया है जो बहुत ही महत्वपूर्ण है
__ सत्वेषु मैत्री गुणिषु प्रमोद, क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वं।
माध्यस्थभावं विपरीतवृत्तौ, सदा ममात्मा विदधातु देव।। इसके अन्तर्गत चार जीवन-मूल्य आते हैं- 1) सभी जीवों के प्रति मैत्री, 2) गुणज्ञों के प्रति आदर, 3) दुःखी एवं पीड़ित व्यक्तियों के प्रति करुणा और 4) अपने से विपरीत भाव रखने वालों के प्रति माध्यस्थ या तटस्थता का भाव
भगवान ने कहा- प्रत्येक प्राणी में चैतन्य का अंश है, जिसे आत्मा कहते हैं। उसकी रक्षा होनी चाहिये। जैन धर्म को छोड़कर किसी भी धर्म ने जीने के अधिकार (Right to life) को मान्यता नहीं दी। महात्मा गांधी ने श्रीमद् राजचन्द्र से अहिंसा का सम्यक् ज्ञान प्राप्त किया तथा इसका राष्ट्रीय स्तर पर असहयोग के रूप में व्यवहार किया तथा स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी। उनका एक प्रसिद्ध भजन है
"वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीर पराई जाणे रे।
पर दु:खे उपकार करे तोए मन अभिमान न आणे रे।।" दूसरे की पीड़ा को समझना और उसका दुःख दूर करना यही अहिंसा की मूल भावना है।
अहिंसा के साथ ही भगवान ने अपरिग्रह का संदेश दिया। भगवान ने कहा'इच्छा हु आगाससमा अणतिया' अर्थात् इच्छाएं आकाश के समान अनन्त हैं। जैसे ईधन से
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