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आधुनिक युग में भगवान महावीर के जीवन-मूल्यों की
प्रासंगिकता
दुलीचंद जैन*
आज हम इस बात पर विचार करेंगे कि तीर्थकर महावीर ने आज से ढाई हजार वर्षों पूर्व जिन जीवन मूल्यों का प्रतिपादन किया था उनकी आधुनिक युग में क्या उपादेयता है, क्या प्रासंगिकता है।
आधुनिक युग विज्ञान और प्रोद्योगिकी का युग है। विज्ञान के क्षेत्र में मनुष्य ने इतनी तीव्र प्रगति की है कि सारा विश्व एक परिवार बन गया है। शिक्षा की तकनीकि का भी अभूतपूर्व विकास हुआ है। इंटरनेट ने शिक्षा के क्षेत्र में चमत्कार पैदा कर दिया है। आज सामान्य व्यक्ति को भी सुख-सुविधापूर्ण जीवन बिताने की जो सुविधाएं प्राप्त हैं वे प्राचीन काल में सम्पन्न वर्ग को भी उपलब्ध नहीं थी। लेकिन इसके विपरीत दूसरी ओर हम देखते हैं कि सारा विश्व हिंसा, द्वेष, तनाव और आतंकवाद से ग्रस्त है। मनुष्य की स्वार्थपरता बढ़ गई है। परिवारों के पारस्परिक सम्बंधों में असहिष्णुता और कटुता बढ़ गई है। पर्यावरण का भयंकर विनाश हुआ है। प्रकृति के संसाधनों की तीव्र क्षति हो रही है। संक्षेप में मनुष्य के मस्तिष्क का विकास हुआ है पर हृदय का क्षेत्र पीछे छूट गया है। महाकवि दिनकर ने ठीक ही कहा था
बुद्धि तृष्णा की दासी हुई, मृत्यु का सेवक है विज्ञान।
चेतता अब भी नहीं मनुष्य, विश्व का क्या होगा भगवान।। अब हम शिक्षा के बारे में विचार करेंगे। शिक्षा दो प्रकार की होती है- पहली भौतिक शिक्षा जिसके द्वारा हम विभिन्न विषयों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। विज्ञान और प्रोद्योगिकी (Science and Technology) भी इसके अंतर्गत आती है। इसके द्वारा हम हमारे भौतिक जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं। इसकी भी हमारे जीवन में बहुत उपयोगिता है। लेकिन हमारे देश के आचार्यों ने कहा कि केवल भौतिक शिक्षा मात्र पर्याप्त नहीं है। हमें इसके साथ आध्यात्मिक शिक्षा भी प्राप्त करनी चाहिये। यह शिक्षा जीवन से आध्यात्मिक मूल्यों अर्थात् अनुशासन, विनम्रता, परोपकार, परदुःखकातरता, करुणा, सहृदयता आदि का विकास करती है। इसके बिना मनुष्य का जीवन अपूर्ण है। यह आध्यात्मिक शिक्षा हमारे जीवन में ज्ञान का विकास करती है। भगवान महावीर ने ज्ञान की * अध्यक्ष, करुणा अन्तर्राष्ट्रीय, 70, शम्बुदास स्ट्रीट, चेन्नई - 600001.
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