________________
130
स्वर्ण जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
राम का मोह है। देवताओं द्वारा पत्थर की शिला पर क्यारी लगाना, उसे सिंचना आदि क्रियाओं की बौद्धिक दृष्टि से मोह को शिथिल किया जाता है। यही घटना कुवलयमाल की सुन्दरी कथा में भी मिलती है। इस प्रकार इन सारे प्रसंगों में बौद्धिक दृष्टि है जिसमें पूर्व कर्मों की परिणिति है, मोह के दुष्परिणाम है इनको बड़े सुझ बुझ से समाधान किया गया है।
माकन्दि अध्ययन की बौद्धिक दृष्टिः- इस अध्ययन में विषय वासना का अज्ञान एवं निपालित की दृढ़ इच्छाशक्ति की बौद्धिक दृष्टि है जिन रक्षित वासना के आवेश में अपने मार्ग से भटक जाता है परिणामस्वरूप रत्नदेवी नष्ट कर देती है। जबकि विषय वासना को नियंत्रण कर किसी से घबराता नहीं उसको शैलक अपनी पीठ पर बैठाकर संसार समुद्र - को पार करा देता है। अर्थात् उसका कल्याण हो जाता है। अर्थात् विषय वासना का अज्ञान एवं जिनपालित का संयम एवं दृढ़ इच्छाशक्ति की बौद्धिक दृष्टि उसे पार पहुँचाती है। अर्थात् अपने उद्देश्य में जिन पालित स्थूल हो जाता है 25 |
चन्द्र अध्ययन की बौद्धिक दृष्टिः- इस अध्ययन में चन्द्रमा के समान समता एवं गुण-अवगुणों की बौद्धिक दृष्टि से ही जीवों के गुण और ह्रास या उत्थान-पतन होता है। यदि सद्गुणों की निरन्तर वृद्धि के पूर्व ही नष्ट कर देना चाहिए। इस प्रकार समता एवं गुण-अवगुण की बौद्धिक दृष्टि से ही जीवों की वृद्धि एवं ह्रास संभव है । दावद्रव अध्ययन की बौद्धिक दृष्टिः- इस अध्ययन की बौद्धिक दृष्टि सहनशीलता जैसे समुद्र के किनारे दावद्रव वृक्ष हवा के झोकों को सहन कर लेता है तो वह सुरक्षित रहता है यदि वह सहन नहीं कर पाता तो नष्ट हो जाता है। उसी प्रकार साधु भी श्रावकों आदि कठोर वचनों को सहन कर लेता है तो मोक्ष मार्ग तक पहुँच जाता है 27 | अतः साधु साधक को सभी दुर्वचन क्षमा भाव से सहन कर लेना चाहिए ।
1
उदकज्ञात अध्ययन की बौद्धिक दृष्टिः- इस अध्ययन की बौद्धिक दृष्टि यह ज्ञानी पुरुष अपनी सम्यक् दृष्टि एवं तात्विक ज्ञान से ही अवलोकन करता है। उस दृष्टि से ही वह राग-द्वेष आदि को दूर कर सकता है, मिथ्या दृष्टि से नहीं यही इस अध्ययन की बौद्धिक दृष्टि है। इसमें सुबुद्धि सम्यक् दृष्टि व्यक्ति जबकि राजा मिथ्या दृष्टि है। अतः राजा के द्वारा भोजन की बार-बार प्रशंसा करने पर भी हां नहीं करता है। क्योंकि राजा सत्य पर श्रद्धा नहीं कर राजा असत्य को सत्य समझकर भ्रम में पड़ रहा है। तब वह सुबुद्धि जलशोधन की बौद्धिक दृष्टि से राजा को परिखा के गन्दे पानी को मृदु बनाकर प्रभावित करता है। इस प्रकार राजा को चातुर्याम धर्म का उपदेश देकर राजा को श्रमणोपासक बना देता है। सम्यक् दृष्टि जीव के बारे में कहा है कि सम्यक् दृष्टि आत्मा भोजन, पान, परिधान आदि साधनभूत पदार्थों के वास्तविक स्वरूप का ज्ञाता होता है। उसमें राग-द्वेष की न्यूनता होती है। अतएव समभावी होता है। किसी वस्तु के उपभोग से न तो व्यक्ति विस्मित होता है न पीड़ा, दुःख-द्वेष का अनुभव करता है। वह यथार्थ स्वरूप को जानकर अपने स्वभाव में स्थिर रहता है। यही सम्यक् दृष्टि जीव की व्यवहारिक कसौटी है 28 | राजा को सुबुद्धि ने अपनी बौद्धिक दृष्टि से ही सत् तत्व का ज्ञाता कहते हुए कहा कि जगत्
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org