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ज्ञाताधर्म कथा में वर्णित बौद्धिक दृष्टि
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वाला विषय-वासनाओं से आसक्त जन्म और मृत्यु के चक्कर में ही फंसा रहता है। परन्तु आस्था और श्रद्धा में युक्त दृढ़ विश्वासी परमार्थ की ओर अग्रसर होता है। कछुए जैसा जलचर जीव के उद्धरण में दो दृष्टियाँ है जो साधु-साध्वियों, श्रावक और श्राविकाओं को इन्द्रिय विषय से विरक्त होने के कारणों की ओर संकेत करता है। अनन्त संसार इन्द्रिय विषय से बनते हैं और इन्द्रिय गोपन से अनन्त संसार के परिभ्रमण से मुक्ति मिलती है। कूर्म और पापी शृंगाल पापी होते हैं और कूर्म इन्द्रीय विषय को गोपन करने वाले होते हैं। जो इन्द्रिय विषय भोगों से विरक्त होता है वह अर्चनीय, वन्दनीय, नमस्कारणीय, पूजनीय, संस्कारणीय एवं सम्मानीय होता है यही कल्याण का सूचक है, मंगल प्रदाता है, देव स्वरूप का कारण है और चैत्य का विशुद्ध साधक है। शैलक अध्ययन की बौद्ध दृष्टिः- शैलक अध्ययन में थावचा पुत्र धर्म चेतना एवं दृढनिश्चय की बौद्धिक दृष्टि के कारण दीक्षित हो गया। इसी दृढनिश्चय धर्म चेतना के कारण जिन धर्म को स्वीकार किया। राजा शैलक भी धर्म चेतना के कारण पाँच अणुव्रतों, सात शिक्षाव्रतों को धारण कर पाँच सौ मंत्रियों के साथ श्रमणोपासक बन गया तथा सुदर्शन भी थावच्या पुत्र के उपदेश एवं धर्म चेतना की बौद्ध दृष्टि के कारण प्रति बोधित होकर दीक्षित हो गया। जिसमें कहा है कि हे सुदर्शन हमारे धर्म के अनुसार भी प्राणातिपात के विरमण से यावत् मिथ्यादर्शन शल्य के विरमण से शुद्धि होती है जैसे रूधिर लिप्त वस्त्र की यावत् शुद्ध जल से धोये जाने पर शुद्धि होती है। इस प्रकार धर्म चेतना, दृढनिश्चय आदि बौद्धिक दृष्टि से प्रत्येक पक्ष अपना कल्याण करता है। तुम्बक अध्ययन की बौद्धिक दृष्टि:- जीवों, गुरुत्व एवं लघुत्व की बौद्धिक दृष्टि को समझकर ही जीव अपना कल्याण कर सकता है जिसको तुम्बे के उदाहरण द्वारा पुष्ट किया है। आठ कर्म प्रकृतियाँ रूपी मिट्टी के लेप से तुम्बा भारी होकर जलाशय के पेंदे में चला जाता है अर्थात् जीव की अधोगति होती है। जब कर्म प्रकृतियों का गलन होता है तो पुनः जीव अपने वास्तविक स्वरूप को प्राप्त कर अर्थात् लघुत्व को प्राप्त कर लेता है। इस बौद्धिक दृष्टि को समझकर जीव अपना कल्याण कर सकता है। रोहिणी अध्ययन में बौद्धिक दृष्टि:- रोहिणी अध्ययन में संयुक्त परिवार प्रथा में बुद्धि चातुर्य एवं बौद्ध दृष्टि से धन्य सार्थवाह ने पंच महाव्रतों के रक्षा स्वरूप रोहिणी की सुझ-बुझ एवं उसका सम्मान धर्म जागरण एवं सक्रियता को बढ़ावा देना है। इसमें धन्य सार्थवाह की दूरदृष्टि है। इसी दूरदृष्टि की बौद्धिकता से परिवार में धर्म (पंच महाव्रतों) की रक्षा का संदेश देकर संयुक्त परिवार को टूटने से बचाता है। मल्लि अध्ययन की बौद्ध दष्टि:- मल्लि अध्ययन में कर्म परिणिति, छल, कपट एवं मूर्छा की बौद्धिक दृष्टि है। जिसमें अज्ञान है, मोह है, साथ-साथ धार्मिक क्रियाओं के वायदे में छल-कपट आने के कारण मल्लि कन्या के रूप में जन्म लेना पड़ता है। राजकुमारी की सौन्दर्य एवं आसक्ति जन्म भाव को पूर्वजन्म का वृतान्त, प्रतिमा में अशुचि पदार्थों की सड़न के आधार पर अपनी सुझ-बुझ से मुक्त हो जाती है। इस प्रकार पउम चरियं, पउमचरियं में लक्ष्मण की मृत्यु उसके शव को छ: माह तक लेकर दर-दर भटकना
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