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________________ 128 स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ रामायण, महाभारत, वेद, उपनिषद एवं बौद्ध परम्परा के सूत्र ग्रन्थों में बौद्धिक दृष्टियों को सर्वोपरि माना गया। पुरुषों की 72 कलाएँ एवं नारियों की 64 कलाएँ शिक्षा पद्धति का सर्वांगीण विकास माना गया। ज्ञाताधर्म कथा में बौद्धिक दृष्टि से मेघ कुमार के बुद्धितत्व का विस्तार किया गया। मेघ कमार दीक्षा की ओर अग्रसर होता है तब उसके माता-पिता निम्न बौद्धिक दृष्टियाँ रखते हैं। आवश्यक दृष्टि :- सामान्य प्रतिपादित करने वाली वाणी। प्रज्ञापना दृष्टि :- विशेष रूप से प्रतिपादित करने वाली वाणी। संज्ञापना दृष्टि :- सम्बोधन करने वाली वाणी। विज्ञापना दृष्टि :- अनुनय-विनय करने वाली वाणी। मेघ कुमार के सामने उक्त सांसारिक बौद्धिक दृष्टियाँ थीं परन्तु वह वैराग्यपूर्ण बौद्धिक दृष्टि वाला था। इसलिए वह अपने माता-पिता के सामने निम्न दृष्टि रखता है। चरणसत्तरि दृष्टि:- कषाय निग्रह सम्बन्धी दृष्टि जिसमें चारित्र की प्रमुखता होती है। पाँच महाव्रत, दशधर्म, वैयावृत्ति, नौ ब्रह्मचर्य गुप्तियाँ, ज्ञान, दर्शन, चारित्र की आराधना एवं 12 तप को महत्व दिया गया। करणसत्तरि दृष्टि:- आहार, वस्त्र, पात्र, शय्या आदि की विशुद्धि, समिति पालना, अनुप्रेक्षा, प्रतिमा, इन्द्रिय निग्रह, प्रतिलेखना, तीन गुप्तियाँ एवं 4 प्रकार की अवग्रह बौद्धिक दृष्टियाँ सामने रखता है। मेघ कुमार की यह बौद्धिक निर्ग्रन्थ दृष्टि थी। क्योंकि वह स्वयं संसार से विरक्त होकर इस तरह अध्यवसाय करके आत्मकल्याण करता है। उसकी समाधि दृष्टि में भी बौद्धिक व पराक्रम, श्रद्धा, धृति, संवेग आदि के कारण हैं। संघाह अध्ययन में मनोरथ तत्व की प्रमुखता है जिसमें निग्रह सम्बन्धी बौद्धिक दृष्टि का विशेष स्वरूप देखा जाता है। इसमें धर्म के 2 स्वरूप विद्यमान हैं एक संविभाग एवं एक रक्षा का जो बिना किसी प्रयोजन के नहीं होता। अंडक में बौद्धिक दृष्टिः- तमेव सच्चं णीसंकंजं जिणोहिं वेइयो । इस अध्ययन की यही दृष्टि जिसमें सुदृढ़ श्रद्धा एवं लक्ष्य की प्राप्ति को विशेष महत्व दिया गया। अश्रद्धा और श्रद्धा का परिणाम अंडक के उदाहरण द्वारा प्रतिपादित किया। बुद्धि की मलिनता में एक मयूरी के अंडे को उत्पत्ति शक्ति से हीन किया। वही बौद्धिक गुणों से पूर्ण जिनदत्त के पुत्र ने उसका परिपूर्ण रक्षण किया। उसकी उत्पत्ति होने पर उसे अनेक कलाओं में प्रवीण किया। बौद्धिक गुणों की विशेषता जहाँ रहती है वहाँ किसी प्रकार का भी अभाव नहीं होता। कूर्म अध्ययन में बौद्धिक दृष्टिः- आत्मसाधक व्यक्ति के लिए जो बौद्धिक दृष्टि दी गई है वह निश्चित ही अत्यन्त ही सार्थक है। कूर्म अथवा कछुआ एक ऐसा प्राणी है, जो सभी तरह से सुरक्षित रहता है। उसका उपरिभाग अत्यन्त कठोर होता है जिसे किसी तरह से छेदन-भेदन नहीं किया जा सकता। यह दृष्टि सामान्य है परन्तु जब इस पर विचार करते हैं तो इसमें लौकिक और पारमार्थिक दोनों ही दृष्टियों का ज्ञान होता है। संसार में रहने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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