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ज्ञाताधर्म कथा में वर्णित बौद्धिक दृष्टि
डॉ. एच. सी. जैन*
आगमों के आध्यात्मिक चिंतन में ज्ञान-विज्ञान की प्रचुरता है। उनमें धर्म, दर्शन, चारित्र एवं संस्कृति के व्यापक पक्ष भी हैं। इन्हीं आगमों में विविध प्रकार की परिस्थितियों का चित्रण है। संस्कृति के अध्येता इनके मूल में प्रवेश इसकी गहराई से अनेक तथ्य प्रतिपादित करते हैं उनपर विश्लेषण करके मानवीय मूल्यों की भी स्थापना करते हैं । आगम सूत्र, अर्थ और दोनों के समन्वय का प्रतिरूप है। जिनमें आप्त प्रतिपादित वचनों का रहस्य भी निहित है। उसमें इतना प्रवेश करते हैं उतना ही रहस्यपूर्ण विवेचन प्राप्त होता है। आज इन आगमों का विधिवत् अनुसंधानात्मक विवेचन भी हो रहा है। धर्म गुरुओं, संतों और विशेष मनीषी विद्वानों द्वारा उनके समस्त तथ्यों पर प्रकाश डाला जा रहा है।
अंग आगम साहित्य के ग्यारह ही अंग ग्रन्थ सर्वज्ञ के अर्थ से उनके शिष्यों द्वारा सूत्रबद्ध किया गया है। उन आगमों में बुद्धितत्व के अनेक पक्ष विद्यमान हैं। इसका मूल कारण यही है कि सर्वप्रथम इन्हें अर्थरूप में निरूपित किया गया। गणधरों ने सूत्रबद्ध किया और बौद्धिक दृष्टि के ज्ञानियों ने विशिष्ट प्रतिभा से उनमें ज्ञान पुष्पों को पल्लवित किया। " अर्हन्त भासियत्थं "।
आचारांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्या प्रज्ञप्ति आदि अंग ग्रन्थों एवं अनेक उपांग ग्रन्थों में बौद्धिक दृष्टि को प्रतिपादित किया गया है। अनुयोग द्वार, विशेषावश्यक भाष्य आदि में बौद्धिक दृष्टि के बुद्धितत्व पर कथन किया गया। विज्ञान रूपी वृक्ष पुष्पित एवं पल्लवित होकर जो सूत्र, पद और वाक्य को व्यवस्थित रूप में कहे गये हैं। अनेक बौद्धिक दृष्टियों से युक्त हैं। वे पूर्णरूप से उदबुद्ध सूत्र हैं । विशिष्ट धर्म आख्यात हैं। श्रुतकल्प हैं । कल्पसूत्र में कल्प बौद्धिक दृष्टि का वाचक है । विनयपिटक में बौद्धिक तत्व नाम दिया गया है । सुत्तनिपात में बुद्ध के बौद्धिक तत्व को महत्व देकर कहा गया कि जो कुछ ज्ञात है वे बौद्धि हैं।
ज्ञाताधर्म की बौद्धिक दृष्टि - णायाधम्म, णाहधम्म आदि नाम से प्रसिद्ध आगम ज्ञातृपुत्र महावीर के अर्थ का बौद्धिक ज्ञात प्रधान सूत्र ग्रन्थ है। इस आगम में बौद्धिक दृष्टि से ही प्रत्येक कथा को उदात्त बनाया गया। इसके प्रथम अध्ययन में 72 बौद्धिक दृष्टियाँ हैं जिन्हें कला कहा गया है।
* सह-आचार्य, जैनोलॉजी एवं प्राकृत विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर ।
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