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उपसंहार
दक्षिण कर भोजन करे, डावे पीवे नीर । डावे करवट सोवना, रहे निरोग सरीर ।।
सन्त कबीर ने अपने इस दोहे में नीरोग शरीर पाने के लिए वास्तुशास्त्र के तीन सूत्र दिए हैं- सीधे हाथ से भोजन करे, बायें हाथ से पानी पीवे, भोजन के पश्चात् वामकुक्षी शयन करे, जिससे शरीर रोगरहित होता है।
स्वर्ण जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
मनुष्य का उत्थान या पतन उसके शुभ या अशुभ कर्म के अधीन है। दुर्व्यसनों का त्याग कर, धर्म पुरुषार्थ प्राप्त करने के लिए गृहस्थ को अपना घर वास्तु विज्ञान के आधार पर बनाना चाहिए, जिसके कारण जीवन में शान्ति, परिवार में सन्तुष्टि, समाज में यश और विपुल समृद्धि प्राप्त हो सके।
नीतिकारों ने “गृहिणीमेव गृह उच्यते" इस सूक्ति के आधार पर सद्गृहिणी गृहस्थ का सच्चा जीवन साथी है। सुशील दम्पत्ति का जीवन सार्थक तब होगा जब उन्हें सुयोग्य सन्तान की प्राप्ति होगी। दीर्घायु प्राप्त माता-पिता, पति-पत्नी और सन्तान, वाहन, जमीन, सेवकों का सौभाग्य प्राप्त करने के लिए वास्तु नियमानुसार गुहा, निषिधिका, मठ, धर्मशालाओं का प्रयोग में लाना अनिवार्य है। वास्तु के लक्षणों से निर्मित भवन धर्म, काम और मोक्ष को सुलभ करता है।
सहायक ग्रन्थ-सूची
प्रतिक्रमण सूत्र
गौतम गणधर ।
प्राकृत दशभक्ति - आचार्य कुन्दकुन्द देव ।
षट्खण्डागम धवला पुस्तक- 1, आचार्य धरसेन |
वसुदेव हिण्डी - भारतीय जीवन और संस्कृति की वृहत् कथा -1, डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव ।
हिन्दी विश्वकोष, खण्ड- 10, काशी नागरी प्रचारणी ।
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राजप्रश्नीयसूत्र |
10. मृच्छकटिकम् - महाकवि शूद्रक |
उत्तराध्ययन टीका।
कर्पूरमंजरी - राजशेखर |
तिलोयपण्णत्ति - यतिवृषभ ।
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