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________________ 124 स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ कोई वृक्ष स्थित हो, विशेषकर नीम का वृक्ष हो, तो वह ग्रह-स्वामी असुरों को प्रिय होगा। अत: ऐसा भवन छोड़ देना चाहिए। मृच्छकटिकम्-प्रकरण के चतुर्थ अंक में कवि शूद्रक ने वसन्तसेना के आठ प्रकोष्ठ वाले भवन का विदूषक के द्वारा वर्णन कराते हुए समकालीन वास्तुविज्ञान या वास्तुशास्त्र के लक्षण का संकेत किया है। उसके अनुसार मनमोहक गेहद्वार, प्रथम प्रकोष्ठ में शंखादि मंगल ध्वनि घटिकाओं से वेष्टित खिड़कियां, सुवर्ण अंलकारों से मंडित सोपान पंक्ति निर्मित थी, जहां द्वारपाल उपस्थित थे। द्वितीय प्रकोष्ठ में पशुधन का निवास-नियोजन किया गया है जिसमें गजशाला, अश्वशाला तथा गोशाला वृषभ, महिष, मेष, बन्दर के निर्माण का संकेत किया गया है। तृतीय प्रकोष्ठ में श्रृंगाररस प्रकाशक साहित्य के अध्ययन-अध्यापन की साधन सामग्रियों का विश्लेषण है, जिसमें पाशक पीठ जुआ खेलने की चौकी आसन तथा चित्रफलक का वर्णन है। चतुर्थ प्रकोष्ठ में संगीत-सभा का नियोजन किया जाता है, जहां मृदंग, काँस्यमज्जीरा, बांसुरी, वीणा आदि वाद्ययंत्रों के प्रयोग द्वारा नृत्य-नाट्य के अभिनय की शिक्षा दी जाती थी। पंचम प्रकोष्ठ में महानस का विश्लेषण है और वहां सुस्वाद्य एवं सुगन्ध युक्त विविध व्यंजनों का वर्णन किया गया है। षष्ठ प्रकोष्ठ में भवन सज्जा एवं अलंकार निर्माण में रत्नों के प्रयोग का विवेचन किया गया है। कस्तूरी घर्षण, चन्दन मिश्रण एवं गन्ध संयोजन ताम्बूल प्रदान एवं पान गोष्ठी का वर्णन भी उस प्रकार के प्रकोष्ठ में किया गया है। सप्तम प्रकोष्ठ में शुक-सारिका, कपोत-कोकिला, मयूर, राजहंस एवं सारस पक्षियों का निर्देश है। कई पक्षी पिंजड़ों में भी मौजूद रहते थे। और ___ अष्टम प्रकोष्ठ में पारिवारिक सदस्यों का विश्लेषण किया गया है। आठ आय के नाम __ वास्तुशास्त्र के मर्मज्ञ पं. ठक्कुर फेरू के अनुसार ध्वज, धूम, सिंह, श्वान, वृष, खर, गज और ध्वाक्ष ये आठ आय हैं।। यथा धय धूम सीह साण विस खर गय धंख अठ्ठ आय इमे। पूव्वइ धयाइ ठिई फलं च नामाणुसारेण।। अर्थात् पूर्वादि दिशाओं में सृष्ट-क्रम अर्थात् पूर्व में ध्वज, अग्निकोण में धूम, दक्षिण में सिंह इत्यादि क्रम से यदि रखे जावें तो वे उनके नाम के सदृश फलदायक सिद्ध होते हैं। अर्थात् विषम आय-ध्वज, सिंह, वृक्ष और गज ये श्रेष्ठ माने गये हैं और सम-आय धूम, श्वान, खर और ध्वाक्ष ये अशुभ माने गये हैं। ठक्कर फेरू के अनुसार किस-किस ठिकाने पर कौन-कौन सा होना चाहिए - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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