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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
प्राकृतबोध
प्राचीन साहित्य, दर्शन और इतिहास को समझने के लिए विभिन्न प्राकृतों का बोध आवश्यक है। प्राकृत में प्रवेशकर्ताओं को लक्ष्य कर प्राकृत व्याकरण की 'प्राकृत-बोध' नामक पुस्तिका का सजन किया है। इसमें 18 प्रकरण दिये गये हैं1. वर्णविचार- स्वर व व्यंजन 2. स्वर परिवर्तन-ह्रस्व स्वरों का दीर्धीकरण 3. सरल व्यंजन परिवर्तन 4. कठिन व्यंजन परिवर्तन, व्यंजन आगम, स्वर आगम, वर्ण विपर्यय 5. संधि प्रकरण-स्वरसंधि, ह्रस्व-दीर्घ संधि, प्रकृतिभाव, व्यंजन-संधि 6. कारक प्रकरण-विभक्तियाँ एवं शब्द रूप 7. क्रिया प्रकरण-धातुरूप-वर्तमान, भूतकाल, भविष्यकाल और विधि रूप 8. कृदन्त प्रकरण-सामान्य प्रत्यय, भावार्थक प्रत्यय 9. तद्धित प्रकरण-सामान्य प्रत्यय, भावार्थक प्रत्यय 10. समास प्रकरण- समासों के विविध प्राकृत प्रयोग 11. अव्यय प्रकरण- भावसूचक कतिपय अव्यय 12. लिंग-विचार- स्त्री प्रत्यय के प्रयोग 13. विशेषण-विचार-भेद सहित विश्लेषण 14. पर्यायवाची शब्द- चालीस प्राकृत शब्दों के पर्यायवाची रूप 15. विविध प्राकृतों की विशेषताएँ, शौरसेनी, अर्द्धमागधी, मागधी, पालि 16. वाक्य रचना- प्राकत में वाक्य प्रयोग 17. गद्य भाग- प्राकृत में लघु निबंध 18. पद्य भाग- उपयोगी प्राकृत स्तुतियाँ
परिशिष्ट- संज्ञा एवं क्रिया शब्द
सं.सं.वि.वि. वाराणसी प्राकृत एवं जैनागम विभाग के अध्ययन बोर्ड ने भी इसकी प्रतियाँ पाठयक्रम में सम्मिलित करने हेतु विचारार्थ मंगाई हैं।
इस तरह अल्पवय में आचार्यश्री की साहित्य सृजन की यह महत्वपूर्ण उपलब्धि और साहित्य जगत को अनुपम देन है।
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