________________
116
स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
में अवतरित हुई है। 'थुदी संगहो' के कुछ छंद भक्तामर, महावीराष्टक, कल्याण मंदिर तथा कुछ प्राचीन गाथाओं-श्लोकों का बरवस ही स्मरण कराकर कृति की प्रामाणिकता के प्रहरी बनकर हृदय को आह्लादित कर देते हैं। अज्झप्पसारो
अज्झप्पसारो, सन् 2007 में सृजन की समष्टि को प्राप्त हुआ। इसमें 100 प्राकृत पद्य हैं। नामानुकूल विषय है किन्तु अध्यात्म को बहुत ही सरल ढंग से इसमें प्रस्तुत किया गया है, जिससे अध्यात्म जैसा विषय भी सर्वगम्य हो गया है। यह कृति अनूठी सृजनधर्मिता की द्योतक है।
साहित्यकार की अभिव्यक्ति में काव्य और शास्त्र ये दोनों दृष्टियाँ समाहित होती हैं। शास्त्र में श्रेय रहता है और काव्य में अनभतियों का प्रयत्न रहता है। 'अज्झप्पसारो' ग्रन्थ में समयसार जैसी अनुभूतियों का समाकलन किया गया है। निज आत्मा ही परमात्मा है
णिय अप्पा परमप्पा, अप्पा अप्पम्मि अत्थि संपुण्ण। तो किं गच्छदि बहिरे, अप्पा अप्पम्मि सव्वदा झेयो।।
- अज्झप्पसारो ।।27।। अर्थात् निज आत्मा ही परमात्मा है, आत्मा अपने आप में संपूर्ण है, तो फिर तुम बाहर क्यों जाते हो, आत्मा में आत्मा का हमेशा ध्यान करो।
यह कुंदकुंद की साहित्य श्रृंखला में सम्मिलित करने जैसा ग्रंथ बन पड़ा है। आचार्यश्री के इस प्राकृत काव्य में रस है, अलंकार है, अनुभूति है और आत्मानुभव की तीव्र प्रेरणा है। भावणासारो
__ भावना की परिभाषा करते हुए पंचास्तिकाय ग्रंथ की तात्पर्य वृत्ति टीका में लिखा है- 'ज्ञातेऽर्थे पुनः पुनश्चिंतनं भावना' अर्थात् जाने हुए अर्थ का बार-बार चिंतन करना भावना है। मूलाचार में तप भावना, श्रुत-भावना, सत्व-भावना, धृति-भावना, संतोष-भावना, बारह भावना आदि को सदा भाने का परामर्श दिया गया है, साथ ही क्लेशकारिणी कांदी, सांमोही, आसुरी आदि दुर्भावनाओं से बचने के लिए कहा गया है।
___व्यक्ति की भावना-शुद्धि हेतु आचार्य कुंदकुंद ने 'बारसाणुवेक्खा' आचार्य कुमारस्वामी ने 'कार्तिकेयानुप्रेक्षा', आचार्य शुभचंद्र ने 'ज्ञानार्णव' तथा मुनि नागसेन ने
नशासन' जैसे स्वतंत्र ग्रंथ लिखे। इनके अलावा और भी कई ग्रंथ इस दिशा में मार्ग दर्शन हेतु उपलब्ध हैं।
भावनाप्रधान ग्रंथों की श्रृंखला में आचार्यश्री सुनीलसागर जी ने 'भावणा-सारो' नामक ग्रंथ की रचना की है। चारों अनुयोगों के गहन अध्येता आचार्यश्री एक युग-विचारक संत होते हुए भी सिद्धांत-ग्रर्थों पर गहरी पकड़ रखते हैं।
___ 'भावनासार' में उन्होंने अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचित्व, आम्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ और धर्म इन बारह भावनाओं का संक्षिप्त किन्तु
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org