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________________ संस्कृत-नाट्य-साहित्य में प्राकृत-प्रयोग की पृष्ठभूमि प्रो. (डॉ.) प्रमोद कुमार सिंह* भरत मुनि के भाषा-वैविध्य और तद्गत नाटकीय उपयोग से अवगत थे। उन्होंने अपने समय के नाट्य-साहित्य को ध्यान में रखकर ही पात्रगत संवादों के लिए संस्कृत और प्राकृत के माध्यमों को निर्दिष्ट किया था। यह अनुमान-मात्र नहीं है। सामान्यतः लक्ष्य-ग्रन्थों के बिना लक्षणों का निर्धारण नहीं होता है। यह और बात है कि भरतकालीन नाट्यकृतियाँ आज अनुपलब्ध हैं। 'नाट्यशास्त्र में भाषिक प्रयोगों की दृष्टि से पात्रों को सूचीबद्ध किया गया है। भरत ने कहीं संस्कृत तो कहीं प्राकृत के संवादों को विहित बतलाया है। उन्होंने धीरोदत्त एवम् धीरप्रशान्त नायकों, रानियों, गणिकाओं और श्रोत्रिय ब्राह्मणों के कथनों को संस्कृत में तथा श्रमणों, तपस्वियों, भिक्षुओं, चक्रधरों, भागवतों, उन्मत्तों, बच्चों, नीचग्रहग्रस्त लोगों, स्त्रियों, नीचवर्णजात व्यक्तियों, हिजड़ों आदि के वक्तव्यों को प्राकृत में उपनिबद्ध किए जाने की व्यवस्था दी है। उनके अनुसार नाट्य-साहित्य में नायिकाएँ एवं उनकी वयस्याएँ शौरसेनी, विदूषक प्राच्या अर्थात् पूर्वी शौरसेनी, धूर्त अवन्तिजा या उज्जयिनी की शौरसेनी, चेट एवं श्रेष्ठी अर्द्धमागधी, रनिवासों के निवासी, सुरंगों के खनक, सेंध लगानेवाले चोर, अश्वपालक एवं विपत्ति में पड़े नायक मागधी; सैनिक, नगर-रक्षक, द्यूतकार आदि दाक्षिणात्या तथा उत्तरवासी और खस वाहलीक की बोली के प्रयोक्ता होंगे। भरत ने पात्र-भेद से मागधी, अवन्तिजा, प्राच्या, शौरसेनी, अर्धमागधी, दाक्षिणात्या और वाहलीका के अतिरिक्त चाण्डाली, शकारी, आभीरी या शाबरी एवं द्राविड़ी के संवादों का भी उल्लेख किया है। वे पुलकसों या डोमों को चाण्डाली; कोयले से जुड़े लोगों, व्याधों, बढ़ईयों एवं तंत्र-मंत्रजीवियों को शकारी; पशुपालकों को आभीरी और वनचरों को द्राविड़ी के प्रयोक्ताओं के रूप में चिह्नित करते हैं। संस्कृत-नाटकों में उपर्युक्त भेदों के अतिरिक्त पैशाची और ढक्की के समावेश की भी चर्चा मिलती है। 'दशरूपक' में पैचाशी प्राकृत के नाटकीय विनियोग का उल्लेख हुआ है और 'मृच्छकटिकम्' ढक्की संज्ञक विशिष्ट प्राकृत के प्रयोग का साक्षात् कराता है। संस्कृत-नाट्यशास्त्र के पर्यालोचन से ऊपरी तौर पर यह तथ्य उजागर होता है कि उच्च्वर्गीय पात्रों के कथोपकथन संस्कृतबद्ध और निम्नवर्गीय एवं स्त्री पात्रों के संवाद * पूर्व अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, बी.आर.ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर, बिहार। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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