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प्राकृत एवं पालि भाषा का सम्बन्ध
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सम्प्रदाय विशेष के ग्रन्थों के कारण इन्हें धार्मिक संरक्षण प्राप्त हुआ वहीं यह दुर्भाग्य भी कहा जाएगा कि धार्मिक छाप लग जाने से इनको जो सम्मान एवं व्यापक स्वीकृति मिलनी चाहिए थी नहीं मिली। आज आवश्यक है कि यदि हम भारत के प्राचीन गौरव को जानना चाहते हैं तो इनके साहित्य को सरक्षित रखें।
संदर्भ ग्रन्थ विवरण 1. पालि मोग्गल्लान व्याकरण।
कच्चायन व्याकरण।
"बौद्ध मिश्र संस्कृतस्य वैशिष्ट्यम्" लेख-अत्त दीपो भव, डॉ. विजय कुमार जैन। 4 "पालि एवं प्राकृत एक तुलनात्मक अध्ययन",डॉ. विजय कुमार जैन का लेख, प्राकृत विद्या
वर्ष 11, अंक-3, अक्टूबर-दिसम्बर, 1999. पिशेल का प्राकृत व्याकरण, पाइअ सद्द महण्णवो की भूमिका।
पालि साहित्य का इतिहास, भरतसिंह उपाध्याय, हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग। 7. लोकायतं कुतर्क च प्राकृतं म्लेच्छभाषितम्।
न श्रोतव्यं द्विजेनैतदधो नयति तद् द्विजम्।। गरुडपुराण, पूर्वखण्ड-78. 8 चुल्लवग्गपालि।
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