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प्राकृत एवं पालि भाषा का सम्बन्ध
मिश्र संस्कृत' कहा जाता है। वस्तुतः यह 'मिश्र संस्कृत' भी प्राकृत के समीप है।
बुद्ध वचनों का 'पालि' नामकरण भी बाद में हुआ। अट्ठकथाओं में यह नाम प्राप्त होता है। अट्ठकथाकार 'पालि' शब्द का प्रयोग पहले बुद्ध वचनों के लिए करते हैं
इमानि ताव पालियं, अट्ठकथायं पन'
नेव पालियं न अट्ठकथायं आगतं।' प्राकृत में मागधी (पालि) की गणना की जाती है। भरतमनि ने सात प्राकत भाषाओं का उल्लेख किया है। उनमें मागधी, आवन्ति, प्राच्या, शौरसेनी, अर्धमागधी, वाहलीका और दक्षिणात्या।
भाषा तत्व की दृष्टि से पालि और प्राकृत में अनेक समानताएं हैं।
- ऋ,ल, ऐ और औ का प्रयोग पालि और प्राकृत में नहीं पाया जाता। (बाद में पालि की एक परम्परा में ऐ और औ का समावेश हो गया है।)
- ऋ ध्वनि अ, इ, उ स्वरों में से किसी एक में परिवर्तित हो जाती है। - विसर्ग का प्रयोग पालि और प्राकृत दोनों में ही नहीं मिलता। - श, ष की जगह स हो जाता है (मागधी प्राकृत को छोड़कर) मूर्धन्य ध्वनि 'ल' पालि और प्राकृत में पाई जाती है। प्राकृत तत्व जो पालि में अनियमित पाए जाते हैं
अघोष स्पर्श की जगह य् या व् का आगमन। - शब्द के अन्तः स्थित महाप्राण की जगह ह हो जाना। - शब्द के अतः स्थित अघोष स्पर्शो का घोष हो जाना। - महाप्राणत्व (ह कार) का आकस्मिक आगमन या लोप। - आकस्मिक वर्ण व्यत्यय।
भरतसिंह उपाध्याय का मत है कि पालि में इसका सूत्रपात है प्राकृत में पूर्ण विकास।
पालि भाषा को पहले मागधी कहा जाता था। क्योंकि भगवान बुद्ध के विचरण का प्रमुख केन्द्र मगध था। लेकिन 'मागधी' प्राकृत एवं मागधी-पालि को एक नहीं माना जाता।
आज जो मागधी प्राकृत प्राप्त होती है उसे पालि के आचार्य बाद की प्राकृत मानते हैं अर्थात् प्राकृत व्याकरणों, अभिलेखों और नाटक ग्रन्थों की मागधि का विकास।
मागधी भाषा की तीन प्रधान विशेषताएं हैं- र और स् का क्रमशः ल और श् में परिवर्तन।
- पुल्लिंग और नपुंसक लिंग अकारान्त शब्दों का प्रथमा विभक्ति एकवचन का रूप एकारान्त होना।
जबकि पालि में र् रहता है ल में परिवर्तन अनियमित है। - जैसे तरुण का तरुण भी है और तलुण भी। - अशोक के पश्चिम लेखों में राजा, पुरा, आरभित्व जैसे प्रयोग मिलते हैं, किन्तु
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