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________________ प्राकृत एवं पालि भाषा का सम्बन्ध डॉ. विजयकुमार जैन* पालि एवं प्राकृत दोनों जनभाषायें थीं। आज हमें जो साहित्य प्राप्त हो रहा है वह 'विशिष्ट' है। प्राकृत भाषा में सभी भाषाएं विलीन हो जाती हैं तथा इसी प्राकृत भाषा से सभी भाषाएं निकलती हैं, जिस प्रकार समस्त जल समुद्रमें विलीन हो जाता है और समुद्र से ही निकलता है। इस दृष्टि से देखा जाय तो वैदिक भाषा भी 'प्राकृत' ही है। वर्तमान में प्राप्त पालि एवं प्राकृत संस्कृत की अपेक्षा वैदिक संस्कृत से अधिक नजदीक हैं। यह अलग बात है कि पालि एवं प्राकृत के जो व्याकरण बने वे संस्कृत व्याकरण से उपकृत हैं। आज प्राकृत के विभिन्न रूप मिलते हैं। पालि को पहले 'मागधी' कहा जाता था । जबकि मागधी प्राकृत भाषा की एक भाषा है। भगवान बुद्ध ने सकायनिरुत्तिया = अपनी-अपनी भाषा में उपदेश देने को कहा था। भिक्षुओं द्वारा बुद्ध वचनों को 'छान्दस्' में कर लेने पर 'दुक्कट' (दुष्कृत) का दोषी भी बतलाया था। बुद्धवचनों का संकलन जिसे हम त्रिपिटक के रूप में जानते हैं तथा उसका उपकारी साहित्य पहले मागधी नाम से जाना जाता था। बौद्ध परम्परा में इसे मूलभाषा कहा है 'सा मागधी मूलभाषा नराययादि कप्पिका'। 'मोग्गल्लान' व्याकरण में भी 'मागधी' ही कहा गया है। सिद्धमिद्धः गुणं साधु नमस्सित्वा तथागतं । सधम्मसंघ भासिस्सं मागधं सद्दलक्खणं । । - मंगलाचरण कच्चायन व्याकरण में भी इसे मागधी कहा गया हैसा मागधी मूलभासा सम्बुद्ध चापि भासरे। बुद्ध वचनों के संग्रह की अपनी ऐतिहासिक परम्परा है। जिसे भाणक परम्परा के रूप में बुद्ध के समय ही इसका प्रचलन हो गया था । बुद्ध वचनों को पहले नौ अंगों में बांटा गया- सुत्त, गेय्य, वेय्याकरण, गाथा, उदान, इतिवृत्तक, जातक, अद्भुतधर्म और वेद्दल्ल। प्रथम संगीति में प्रथम बार विनय एवं धर्म का संगायन बुद्ध के परिनिर्वाण के तुरन्त बाद किया गया। द्वितीय संगीति परिनिर्वाण के 100 वर्ष बाद हुई, जिसमें संघ भेद हो गया। एक परम्परा थेरवादी तथा दूसरी महासांघिक कहलायी । थेरवादी परम्परा का साहित्य पालि में तथा महासांघिक परम्परा का साहित्य संस्कृत में प्राप्त होता है जिसे 'बौद्ध * रीडर, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (मानित विश्वविद्यालय), गोमती नगर, लखनऊ - 226010. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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