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प्राकृत-भाषा की प्राचीनता एवं सार्वजनीनता
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इस प्रकार लोक-भाषा-प्राकृत ने प्रारम्भ से ही भारतीय संस्कृति एवं साहित्य के बहुमुखी विकास में रचनात्मक योगदान कर उसे समृद्ध किया है। समाज के उपेक्षित, दलित, पीड़ित एवं पिछड़े वर्गों में उनकी सुषुप्त-शक्तियों को जागृत कर उन्हें पूर्ण विकसित होने के सुअवसर प्रदान किये हैं। लोकभाषा की शक्ति को प्रदर्शित करने, प्रकृति में अन्तर्निहित वैज्ञानिक शक्तियों को उद्घाटित करने, इतिहास को निर्मित करने एवं नैतिक संदेशों को राजमहलों से लेकर झुग्गी-झोपड़ों तक भेजने में उसके योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता।
मध्यकालीन भारतीय भाषा-अपभ्रंश की माता तथा आधुनिक भारतीय भाषाओं की दादी के रूप में प्रसिद्ध उक्त प्राकृत-भाषा के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना हम सभी का परम कर्तव्य है। प्राकृत में सम्बोधन-सूचक "हलो-हलो" शब्द ने मानों काल की सीमा को पाटकर अपना विश्वव्यापी रूप धारण कर टेलिफोन के माध्यम से राजमहलों से झोपड़ों तथा अमीर-गरीब को "हला-हला", "हलो-हलो" कहना सिखलाकर वह अपनी व्यथा-कथा कह रहा है कि अभी तक उसका जो साहित्य प्रकाशित हो सका है, वह तो ठीक है ही, फिर भी, उसके अनेक पक्ष अभी भी उपेक्षित पड़े हुए हैं, अत: प्राच्य-भारतीय विद्या को समृद्ध बनाने की दृष्टि से उनके काल-कवलित होने के पूर्व उनका भी उद्धार और प्रकाशन होना अनिवार्य है।
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