SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 94 स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ अध्याय में 52 प्रकार के द्विपदी-छंदों, चौथे अध्याय में 26 प्रकार के गाथा-छन्दों, पांचवें अध्याय में 50 प्रकार के संस्कृत के वार्णिक-छंदों तथा छठवें अध्याय में प्रस्तार, नष्ट, उद्दिष्ट, लघुक्रिया, संख्या और अध्वान नामक छः प्रकार के प्रत्ययों के लक्षण बतलाए गये हैं। प्रस्तुत ग्रंथ की एक अन्य विशेषता यह भी है कि इसमें आभीरी-भाषा का अड्डिला, मारवाडी-भाषा का ढोसा, मागधों का मागधिका तथा अपभ्रंश के रड्डा छंदों की चर्चा की गई है। इसी प्रकार एक अज्ञात नामा कवि (13वीं सदी) कृत छः उद्देश्य (अध्याय)प्रमाण कवि-दर्पण एवं महाकवि नन्दिताढ्य (दसवीं सदी के लगभग) कृत 92 गाथा-प्रमाण-गाहालक्खण नामक ग्रंथ महत्वपूर्ण माने गये हैं। प्राकृत-पैंगलं (14वीं सदी) एक संग्रह गंथ है। किन्तु उसके संकलन-कर्ता का नाम अज्ञात है। प्रस्तुत ग्रंथ में प्राचीन हिन्दी के आद्यकालीन कवियों द्वारा प्रयुक्त वार्णिक एवं मात्रिक छन्दों का सोदाहरण निरूपण किया गया है। इसमें मेवाड़ के पराक्रमी राजपूत राजा वीर हम्मीर के पराक्रमों का सुन्दर चित्रण मिलता है। चूंकि इसमें कर्पूरमंजरी सट्टक (राजशेखर कृत) के पद्य भी उद्धृत मिलते हैं, अतः उक्त ग्रंथ का काल दसवीं सदी के बाद का माना जा सकता है। इसका वर्ण्य-विषय दो परिच्छेदों में विभक्त है, प्रथम में मात्रिक-छंदों का तथा द्वितीय में वर्णवृत्तों का सोदाहरण निरूपण किया गया है। निमित्त, ज्योतिष, मुहूर्त-शोधन तथा अंग-विद्या संबंधी प्राकृत-साहित्य जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है, प्राकृत-साहित्य में निमित्त, ज्योतिष, अंग-विद्या, ग्रह-नक्षत्रों के प्रभाव तथा ग्रह-नक्षत्रों की परस्पर में दूरी बतलाने वाला साहित्य भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। आचार्य धरसेन (ई. पू. प्रथम सदी के आसपास) कृत निमित्त-विद्या संबंधी-जोणी-पाहुड- (वर्तमान में अनुपलब्ध), आचार्य हरिभद्र (आठवीं सदी) कृत 133 गाथा प्रमाण लग्नशुद्धि, जिनप्रभसूरि (14वीं सदी) कृत वड्ढमाण-विज्जाकप्प, आचार्य दुर्गदेव (11वीं सदी) कृत 144 गाथा प्रमाण दिनशुद्धि, अंग-प्रत्यंगों की संरचना देखकर फलादेश बतलाने वाले ग्रंथ-अंग-विज्जा एवं करलक्खण, अज्ञात-कर्तृक 238 गाथा-प्रमाण ज्योतिषसार. अकाल. दुष्काल तथा समृद्ध सुकाल का वर्णन करने वाला 30 गाथा प्रमाण ज्योतिष ग्रंथ-लोकविजय-यंत्र, अर्धमागधी-उपांगों के सूरियपण्णती, चंदपण्णत्ती एवं जंबूदीवपण्णत्ती में वर्णित नक्षत्र-विद्या तथा गणितीय सिद्धान्तों की दृष्टि से तिलोयपण्णती, संग्रहणी, त्रिलोकसार, लोयसार आदि ग्रंथ विशेष महत्वपूर्ण हैं। विज्ञान के क्षेत्र में भी प्राकृत-कवियों के महत्वपूर्ण योगदान रहे हैं। उसके जैनाचार्यों के पदगल संबंधी सिद्धान्त (Atomic Theory). भौतिक-शास्त्र के देश-विदेश के वैज्ञानिकगण पर्याप्त तुलनात्मक अध्ययन करते हुए उसके वैशिष्ट्य पर प्रकाश डाल रहे हैं। इसी प्रकार प्राकृताचार्यों द्वारा वर्णित जीव-द्रव्य (Soul Substance), धर्म-द्रव्य (Medium of Motion),अधर्म-द्रव्य (Medium of Rest), आकाश-द्रव्य- (Spal substance) आदि पर भी आधुनिक विज्ञान के संदर्भो में तुलनात्मक अध्ययन किया जा रहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy