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प्राकृत-भाषा की प्राचीनता एवं सार्वजनीनता
आभूषण उल्लरयं (1/90)
कौंडियों तथा सीपियों के बने हुए आभूषण। चडुलातिलयं (3/8)
= बहुमूल्य रत्नजटित स्वर्ण का हार। अज्झोल्लिया (1/33)
___= मुक्ताफलों से जटित गले का हार।। उआली (1/90)
- स्वर्णनिर्मित कर्णाभूषण। सिंहभंडक-सिंह-मुखाकृतिवाला गले का ऐसा आभूषण, जिसमें सिंह के मुख में से मोतियों के झुग्गे लटकते रहते थे, (रयणावली-गाथा-147-59)- इसी प्रकार मकराकृति, वृषभाकृति, गजाकृति, चक्रवाकमिथुनाकृति वाले गले के आभूषण भी अत्यंत लोकप्रिय थे। एतद्विषयक वह गाथा निम्न प्रकार है
तिरीडं मउडो चेव तह सीहस्स-भंडकी।
अलकस्स पदिक्खेवो अहवा मत्थककंटक।। (रयणावली-147) णिडालभासक
- माथे की टिकुली या तिलक मुहफलक
- मुंह को सजाने वाला आभूषण, कर्णलोढक
- कर्णफूल या कान की लौंग। वलय
- चूड़ियां कंकण
कंकण हस्तकलापक
हाथों में रंग-विरंगी चूड़ियों के समूह णदिविद्धणक
- मांगलिक आभूषण, मंगल-सूत्रअपलोकणिका - गवाक्षाकृति, जालाकृति का रत्न-जटित स्वर्णाभूषण, जो मुंह
पर धारण किया जाता था। सीसोपक
- स्वर्ण एवं चन्द्रकान्त मणि द्वारा निर्मित शिरोभूषण
(राजस्थानी-टिकुली) . इसी प्रकार अन्य कर्णाभूषणों में तालपत्र, आबद्धक, कुण्डल, जणक, ओकासक (टॉप्स), कण्णेपुरक (साधारण व्यक्ति इसे धारण करते थे), सुवण्णसुतक- (स्वर्णजंजीर), तिपिसाचक (तीन यक्षों की आकृतिवाला गले का हार), मणिसोमणक (विमानाकृति का मणि-हार, सौभाग्यवती नारियों के लिये), अट्ठमंगलक- ग्रहनिवारक अष्टमंगलाकृति (बाणभट्ट की भाषा में अष्ट-मंगलक-माला) वाला हार, पेचुका (हंसुली), कठेवट्टक (कठुला), ओराणी (धनिया-फल के आकार वाला स्वर्णहार), णितरंणी (लहरियादार-माला), कंटकमाला (नुकीले दानों वाला हार), पिप्पल-मालिका (मटरमाला, मुक्तावली) इसी प्रकार अन्य आभूषणों में कांची, रशना, मेखला, जंबूका, कंटिका एवं संपडिका। पैरों के आभूषणों में णेउर (नूपुर), परिहरेक (पैरों के कड़े) खिंखिणिका-घुघरु/पादमुद्रिका (विछिया), आदि। भुजाओं के आभूषणों में अंगद, तुडिय, टड्डे, हाथों में हस्तकटक, अंगुलियों में अंगुलेयक मुद्देयक (अंगूठी)। आदि-आदि वस्त्र-प्रकार ओड्ढणं (1/155)- उत्तरीय, (राजस्थानी-ओढ़नी) ब्रज, अवधी एवं बुन्देली में फरिया
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