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स्वर्ण जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
वास्तु-सार, धातु एवं द्रव्य परीक्षा नामक ग्रंथ )
ज्योतिष, गणित, भूगोल एवं खगोल (Astronomy, Astrology, Methamatics, Geography and Cosmology etc.)- दे. अर्धमागधी के उपांग सं. 5वें, 6वें एवं 7वें तथा तिलोयपणती, तिलोयसार, जयपाहुड, संगहणी, लोयसार, आयज्ञानतिलक, इसि भासिय एवं ज्योतिषसार आदि)
निमित्तशास्त्र ( Science of Prognostication), रमल अथवा पासक - विद्या (Science of pretelling events by casting dice) शकुनशास्त्र (Science of Omens) धातुविद्यापरीक्षा ( Lesting of Alchemy) अश्वशास्त्र (Deep Knowledge of various kinds of Horses) हस्तिपरीक्षा (art of training of elephants ) मृगपक्षिशास्त्र ( Knowledge of birds and Animals) गंधर्ववेद (Science of Music) धनुर्वेद ( Archery ) वृक्षायुर्वेद ( Art of Planting or cultivating trees) अंगविद्या (Science of Divination - दे अंग-विद्या एवं करलक्खण) बीजरोपण - नक्षत्र (Selecting a proper constellation for planting seeds written in Kannada Language) जोणि- पाहुड ( आचार्य धरसेन कृत जो कि दिगम्वर - श्वेताम्बर सभी के लिये मान्य है एवं मुनि भोजसागर कृत पाशिक- विद्या 18वीं सदी) आदि-आदि।
कोष -ग्रंथ ( Dictionaries )
आचार्य हेमचन्द्र ने अपने देशीनाममाला ( रयणावली) नामक कोष-ग्रंथ में अपने पूर्ववर्त्ती कोष-ग्रंथकारों के नामोल्लेख करते हुए कहा है कि इन्होंने शब्द कोष -ग्रंथों की रचनाएं की हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं- (1) धनपाल, (2) देवराज, (3) द्रोण, (4) अभिमान - चिन्ह, (5) पादलिप्ताचार्य एवं (6) शीलांक । आचार्य हेमचन्द्र के उल्लेख से यह स्पष्ट है कि वे सभी अर्थात् पूर्ववर्त्ती अर्थात् 13वीं सदी के पूर्ववर्त्ती कोषकार थे। उनमें से महाकवि धनपाल कृत पाइयलच्छीमाला नामक ग्रंथ तो उपलब्ध एवं प्रकाशित है किन्तु अन्य शब्दकोषग्रंथ उपलब्ध नहीं हैं।
उक्त उपलब्ध शब्द-कोषों में से कुछ शब्दों का यदि अध्ययन करें तो उनमें विस्मयकारी लौकिक सांस्कृतिक सामग्री उपलब्ध होती है। ध्यातव्य है कि यह शब्दावली 13वीं सदी के पूर्व की है, जो अत्यन्त मनोरंजक है।
उदाहरणार्थ कुछ रोचक एवं सूचक सांस्कृतिक एवं भाषा - शास्त्री तथा आदिकालीन हिन्दी सम्बंधी शब्दावली यहां प्रस्तुत की जा रही हैहिन्दी भाषा के उद्भव के मूल स्रोत
हिन्दी के उद्भव के विषय में विभिन्न विद्वानों में कुछ मतभेद रहे हैं। महापण्डित राहुल सांकृत्यायन ने महाकवि स्वयंभू के पउमचरिउ (आठवीं सदी) में हिन्दी के मूल बीज खोजते हुए उससे गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस को प्रभावित बताया है। वह क्रम आगे भी चलता रहा किन्तु आचार्य हेमचन्द्र ( 13वीं सदी) के देसीनाममाला ( रयणावली) में हिन्दी के शब्द-रूपों को तो स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। उदाहरणार्थ निम्न शब्दावली दृष्टव्य है
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