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प्राकृत-भाषा की प्राचीनता एवं सार्वजनीनता
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भी उसमें कुछ न कुछ त्रुटियां रह ही गई। उसमें प्रयुक्त चोयट्ठि पलवभार, कल्पद्रुम-विधान, किमिच्छिक-दान निषदि, वाचना जैसे पारिभाषिक शब्दों के अर्थ लम्बे समय तक भ्रमात्मक ही होते रहे किन्तु जैन-परम्परा की इस शब्दावली के जानकारों ने जब उनका विशेष अध्ययन कर उनका विश्लेषण किया, तब कहीं उनका अर्थ स्पष्ट हो सका। अन्य शिलालेखों के अध्ययनों में भी लगभग यही स्थिति रही।
जैसा कि कहा जा चुका है, पिछले लगभग दो सौ वर्षों के देश-विदेश के जिज्ञासु प्राच्य-विदों के अथक परिश्रम से अभी तक लगभग 66 प्राकृत भाषात्मक अभिलेख मिले हैं, जिनकी मैं अन्यत्र चर्चा कर चुका हूँ। अत: स्थानाभाव एवं समयाभाव के कारण मैं यहां उनकी विस्तृत चर्चा न कर उनके केवल नामोल्लेख मात्र ही कर रहा हूँ1. बडली अभिलेख, जो अजमेर के पास बडली (या बी) नामक स्थान पर प्राप्त हुआ है, जो भ. महावीर के परिनिर्वाण के 84 वर्ष बाद (अर्थात् ई. पू. 443 में) टंकित किया गया था तथा जो पं. गौ. हि. ओझा तथा डॉ. राजबली पाण्डेय के अनुसार भारत का प्राचीनतम अभिलेख माना गया है। 2. प्रियदर्शी सम्राट अशोक के अभिलेख कुल-संख्या 39, जो ई. पू. 272 से 232 के मध्य टंकित कराये गये थे। 3. कलिंगाधिपति जैन सम्राट खारवेल का हाथीगुंफा-लिखालेख (ई. पू. द्वितीय सदी) तथा 4. ई. पू. दूसरी सदी से लेकर ईस्वी की चौथी सदी तक के 25 अभिलेख।
भारत के प्रमुख स्थलों पर ब्राह्मी एवं खरोष्ठी लिपियों में उपलब्ध हुए हैं तथा भारतीय इतिहास के निर्माण में उनका बड़ा भारी योगदान रहा है। प्राकृत का धर्म-निरपेक्ष (Secular) साहित्य
धर्म-निरपेक्ष साहित्य वह है, जो बिना किसी पंथ, सम्प्रदाय, जाति, धर्म या प्रान्त आदि के भेद-भाव के, सभी को समान रूप से अपना-अपना विकास कर पाने के बौद्धिक या वैचारिक साधन प्राप्त करा सके। इस दृष्टि से भी प्राकृत-साहित्य का भारतीय संस्कृति को समृद्ध करने में कम योगदान नहीं रहा। उसके जैनाचार्यों ने प्राकृत-भाषा में दर्शन अध्यात्म, आचार, धर्म, ध्यान-योग एवं आत्म-संबोधन आदि विषयों पर तो प्रचुर-मात्रा में लिखा ही, व्याकरण, छन्द, अलंकार, रस, काव्य-शास्त्र तथा द्रव्य-व्यवस्था जैसे धर्म-निरपेक्ष साहित्य का लेखन कर युग की मांगों को पूर्ण करने के यथाशक्य प्रयत्न भी किये और समग्र मानव-जाति के विकास के ज्ञान-संवर्धन में रचनात्मक योगदान किए हैं।
___ यही क्यों? मानव-शरीर-विज्ञान (Anatomy and Physiology)-(दे. तंडुलवेयालिस एवं भगवती-आराधना), रोग-निदान एवं औषधि-विज्ञान (Medical Sciences, -दे. अर्धमागधी के 5वें, 6वें एवं 7वें उपांग तथा भगवती-आराधना)
रत्न-परीक्षा, द्रव्य-परीक्षा एवं वास्तु-विद्या (Testing of Precious stones, Test of Coins and Science of Architecture -दे. करनाल, (हरियाणा) निवासी तथा दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन के समकालीन पं. ठक्कुर फेरु (वि. सं. 1372) कृत
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