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________________ स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ प्राकृत के अन्य चरित-काव्यों में गुणपाल (9वीं सदी) कृत जंबुचरियं, शीलांकाचार्य (9वीं सदी) कृत चउप्पन-महापुरिसचरियं (54 महापुरुषों के चरित), धनेश्वर सूरि (11वीं सदी) कृत प्रेमाख्यानक-काव्य सुरसुंदरीचरियं (16 सर्ग अथवा 4001 गाथा-प्रमाण), लक्ष्मणगणि (12वीं सदी) कृत सुपासणाहचरियं (8 सहस्र-गाथा-प्रमाण), अभयदेव-सूरि के शिष्य चन्द्रभ-महत्तर (12वीं सदी) कृत सिरिविजयचंद-केवलिचरियं (1063 गाथा-प्रमाण), आम्रदेवसूरि के शिष्य नेमिचन्द्र सूरि (12वीं सदी) कृत महावीरचरियं (2385 गाथा-प्रमाण), देवेन्द्र सूरि (13वीं सदी) कृत सुदंसणचरियं (4000 पद्य-प्रमाण), अनंतहंस (16वीं सदी) कृत कुम्मापुत्तचरियं (198 पद्य-प्रमाण), सोमप्रभसूरि कृत सुमतिणाहचरियं (9000 गाथा-प्रमाण), वर्धमानसूरि कृत आदिणाहचरियं तथा मणोरमाचरियं, देवेन्द्रसूरि कृत कण्ह-चरियं (कृष्णचरितम्), जिनेश्वरसूरि कृत चंदप्पहचरियं (40 गाथा-प्रमाण) एवं कण्हचरियं (कृष्णचरितं-1163 गाथा प्रमाण), देवचन्द्रसूरि कृत संतिणाहचरियं, शान्तिसूरि (1104 ईस्वी) कृत पुहवीचंदचरियं (पृथिवीचन्द्र-चरितम्), मलधारी हेमचन्द्र कृत मिणाहचरियं, श्रीचन्द्र (1135 ईस्वी) कृत मुणिसुव्वयसामिचरियं, श्रीचंदसूरि (1154 ई.) कृत सणंकुमारचरियं, मुनिभद्र (1353 ई.) कृत संतिणाहचरियं, नेमिचन्द्र सूरी (12वीं सदी) कृत रयणचूडरायचरियं एवं गुणचन्द्र (12वीं सदी) कृत महावीरचरियं, आदि-आदि। इन चरित-काव्यों के माध्यम से प्राकत-कवियों ने न केवल प्राच्य भारतीय विद्या को समृद्ध किया अपितु उनके माध्यम से मानव के व्यक्तिगत चरित्र-निर्माण, स्वस्थ-समाज एवं राष्ट्र-निर्माण के लिए मार्ग-निर्देशन के साथ-साथ समकालीन संस्कृति को भी प्रकाशित करने का प्रयत्न किया है। प्राकृत चम्पू-काव्य गद्य-पद्य मिश्रित विधा वाला काव्य चम्पू-काव्य कहलाता है। इस दृष्टि से प्राकृत-साहित्य में इस कोटि के काव्य प्रायः नहीं के बराबर ही लिखे गये। यद्यपि पूर्व में जिन चरित-काव्यों के नामोल्लेख किये गये हैं, उनमें से कुछेक में गद्य-पद्य का मिश्रण पाया जाता है किन्तु वे चम्पू की इस काव्य-विधा में परिगणित नहीं किये जा सकते क्योंकि गद्य-पद्य के मिश्रणमात्र से ही कोई काव्य चम्पू-काव्य नहीं बन जाता। उसकी शास्त्रीय परिभाषा के अनुसार तो जिस काव्य में वस्तु और दृश्यों का रूप-चित्रण गद्य में किया गया हो और उसकी पुष्टि के निमित्त भावों या विभावादि का पद्य में निरूपण हो, वस्तुतः उसे चम्पू-काव्य कहा गया है। कथावस्तु का गुम्फन भी महाकाव्यों एवं चरित या पुराण-काव्यों की अपेक्षा भिन्न शैली में किया जाता है तथा गद्य और पद्य दोनों का ऐसा अविनाभावी संबंध रहता है कि उनमें से किसी भी एक अंश को निकाल देने से कथा-प्रवाह अवरुद्ध दिखाई देने लगता है। प्राकृत में यद्यपि पूर्वोक्त महावीरचरियं, समराइच्चकहा, जंबूचरियं, रयणचूडरायचरियं में भी गद्य-पद्य का मिश्रण पाया जाता है किन्तु उनकी गणना इस कोटि में नहीं की जा सकती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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