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स्वः मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रन्थ
कारों ने अपनी सम्पूर्ण योजना (प्रोजेक्ट) को भी प्रस्तुत कर दिया है। वस्तुतः उक्त कोष के संपादन में कोषकारों का दृष्टिकोण सुस्पष्ट, निभ्रान्ति और वैज्ञानिक है । जैन विद्या के क्षेत्र में यह पहला कोश है, जिसने दार्शनिक पद्धति से विषयों का वर्गीकरण - प्रतिपादन किया है । कोष रचना की प्रक्रिया वैज्ञानिक प्रयोगधर्मी और समीचीन तो है ही, रोचक और सुविधाजनक भी है। कोष १६६६ ई. में प्रकाशित हुआ है । सम्पादक परम्परावादी नहीं प्रयोगधर्मी है। कोष रायल आकार में मुद्रित है। इसमें कुल ६६ पृष्ठ हैं। आरम्भ में एक सार्थक प्रस्तावना है, जिसमें कोषकारों ने कोश की उपादेयता, पद्धति, प्रक्रिया और उपयोगिता पर प्रकाश डाला है । साथ ही उस परिकल्पना को भी स्पष्ट किया है जो कोश की जननशीलता - जैनरेटिवनेस का द्योतक है । इस तरह यह कोष एक पड़ाव है अन्तिम गन्तव्य नहीं है। मूलतः कोशकारों की एक वृहत योजना है, प्रस्तुत कोष जिसकी एक नगण्य किस्त है । प्रस्तावना से लगा हुआ श्री नथमल टांटिया का प्राक्कथन है, जिसमें उन्होंने कोश की उपयोगिता और उसकी विशिष्टताओं का उल्लेख किया है। हीराकुमारी ने आमुख लिखा है, जिसमें अनेक संभावनाओं, योजनाओं और परिकल्पनाओं को दिया गया है । आमुख का व्यक्तित्व समीक्षात्मक है। कुल मिलाकर 'लेश्या कोष' एक ऐसा संदर्भ ग्रंथ है, जिसने न केवल जैन विद्या, अपितु प्राच्य विद्या को भी अलंकृत कर समृद्ध किया है। इसी श्रंखला में सन १६६६ ई. में "क्रियाकोष" प्रकाशित हुआ है, किन्तु इसके बाद क्या हुआ, यह अविदित है । लेश्या कोष के सम्पादक हैं- श्री मोहनलाल बांठिया और श्रीचन्द चोरड़िया ।
डाः नेमीचन्द जैन
Jain Education International 2010_03
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