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लेश्या कोश
विद्वानों की सम्मति
लेश्या कोष यह जैन वाग्मय का श्वेतांबर सामग्री - स्त्रोतों पर आधारित सर्वप्रथम विशेष कोष है। यद्यपि कोशकारों की योजना है कि वे दिगम्बर-सामग्री स्त्रोतों पर आधारित एक अन्य लेश्या कोष सम्पादित करें तथापि उनकी इस परिकल्पना ने, अभी कोई आकार ग्रहण नहीं किया है। प्रस्तुत कोष जैन कोष विज्ञान के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक आरंभ है। समग्र कोष वैज्ञानिक विधि से संपादित है। इसलिए इसे हम केवल लेश्या सम्बन्धी शब्दों की विवरणिका नहीं कहेंगे, वरन एक ठोस कोष-रचना का अभियान देंगे। विद्वान कोषकारों ने प्रस्तावना में कोश रचना पद्धति, मेथाडोलोजी पर भी विशद प्रकाश डाला है। सम्पूर्ण योजना, जिसके अन्तर्गत कई महत्वाकांक्षी संकल्प घोषित हैं, भारतीय कोष रचना के क्षेत्र में महत्वपूर्ण देन है। कोशकारों के शब्दों मे लेश्या कोष हमारी कोष परिकल्पना का परीक्षण है। अतः इसमें प्रथमानुभव की अनेक त्रुटियां हों तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
प्रस्तुत कोष एक विशिष्ट कोष है। उन दिनों तीन प्रकार के कोष सामने आये हैं - १. विषय कोष, २. ग्रन्थकार कोष, ३. ग्रन्थ कोष। कोष संपादकों ने अनुसंधित्सुओं की उन कठिनाइयों का भी ध्यान रखा है जो किसी विषय के गहन अध्ययन - अनुसंधान में व्यवधान उत्पन्न करती है। उन्होंने इस तरह के दो-तीन संस्मरण भी प्रस्तावना में दिये हैं। वैसे कोषकारों ने विशिष्ट पारिभाषिक, दार्शनिक, आध्यात्मिक विषयों की एक व्यापक सूची बनायी थी और तदनुसार १००० विषय भी चुने थे, किन्तु बाद में उस तालिका को सीमित कर लिया गया और कुल १०० विषय ही निश्चित कर लिये गए। इन्हें विवृत्ति के लिये दार्शनिक पद्धति से योजित किया गया है। संकलन में तीन बातों का विशेष ध्यान रखा गया है । पाठों का मिलान, विषयों के उपविषयों का वर्गीकरण, हिन्दी अनुवाद । इन सावधानियों से कोष अधिक उपयोगी बन गया है। प्रस्तावना केवल 'लेश्या कोष' की अनुभवों और कोषकारों की प्रयोगधार्मिता का ही विवरण नहीं है, अपितु इसके द्वारा कोष
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