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लेश्या कोश
इसके सम्पादक श्री मोहनलाल बांठिया और श्रीचन्द चोरड़िया हैं और इसके प्रकाशन का ग्रंथभार श्री बांठिया ने उठाया है, जो कलकता से सन १६६६ में प्रकाशित हुआ। वे दोनों विद्वान जैन दर्शन और साहित्य में संशोधक रहे हैं। सम्पादकों ने सम्पुर्ण जैन वांग्मय को सारभौभिक दशमलव वर्गीकरण पद्धति के अनुरूप १०० वर्गों में विभक्त किया है और आवश्यकतानुसार उसे यत्रतत्र परिवर्तित भी किया। मूल मूल्यों में से अनेक विषयों के उपविषयों की भी सूची इसमें सन्निहित है। इसके सम्पादन में तीन बातों को आधार माना गया है - १. पाठों का मिलान, २. विषय के उपविषयों का वर्गीकरण तथा, ३. हिन्दी अनुवाद मूल पाठ को स्पष्ट करने के लिए संपादकों ने टीकाकारों का भी आधार लिया है। इस संकलन का काम आगम ग्रंथों तक ही सीमित रखा गया है। फिर भी संपादन, वर्गीकरण तथा अनुवाद के कार्य में नियुक्ति, चूर्णि, वृत्ति, भाष्य आदि टीकाओं का तथा सिद्धान्त ग्रंथों का भी यथा स्थान उपयोग हुआ है। दिगम्बर ग्रंथों का इसमें उल्लेख नहीं किया जा सका। संपादक ने दिगम्बर लेश्या कोष को पृथक रूप से प्रकाशित करने का सुझाव दिया है। कोष-निर्माण में ४३ ग्रंथों का उपयोग किया है।
- डा. पुष्पलता जैन, नागपुर
लेश्या-कोश के प्रारम्भिक ३४ पृष्ठों को पूरा सुन गया हूं। अगला भाग अपेक्षा के अनुसार ही देखा है। पर उसका पूरा ख्याल आगया है। प्रथम तो यह बात है कि एक व्यापारी फिर भी अस्वस्थ तबियतवाला इतना गहरा श्रम करे और शास्त्रीय विषयों में पूरी समझ के साथ प्रवेश करे यह जैन समाज के लिए आश्चर्य के साथ खुशी का विषय है । आपने कोशों की कल्पना को मूर्त बनाने का जो संकल्प किया है वह और भी आश्चर्य तथा आनन्द का विषय है। इतनी बड़ी भारी जवाबदेही का काम निर्विघ्न पूरा हो - यही कामना
है।
- प्रज्ञाचक्षु पं सुखलालजी संघवी, अहमदाबाद
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