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मिथ्यात्वीकाआध्यात्मिक विकास
लेखक ने अपने इस ग्रंथ में शोधसार समाविष्ट कर शोधार्थी विद्वज्जनों के लिए मार्ग प्रशस्त किया है। यत्र-तत्र पेचीदे प्रश्नों को उठाकर उसका सोदाहरण व शास्त्र सम्मत समाधान भी किया गया है।
- डाः दामोदर शास्त्री, दिल्ली
श्रीचन्द चोरड़िया के विशिष्ट ग्रंथ "मिथ्यात्वी का आध्यात्यिक विकास" में शास्त्रीय दार्शनिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण प्रतिपादन हुआ है। जैन धर्म के तात्विक चिन्तन में रूचि रखनेवालों के लिए तो यह पुस्तक ज्ञानवर्द्धक और रसप्रद है ही, किन्तु साम्प्रदायिक अनाग्रह और वैचारिक उदारता के इस युग में हर बौद्धिक और चिन्तनशील व्यक्ति के लिए इसका स्वाध्याय उपयोगी भी है।
- मुनिश्री राकेशकुमार, कलकता
पुस्तक में नौ अध्याय हैं - विभिन्न दृष्टिकोणों से मिथ्वात्वी अपना आत्म विकास किस रूप में किस प्रकार कर सकता है - दर्शाया है। जैन सिद्धान्त के प्रमाणों के आधार पर इस विषय को स्पष्टतया पाठकों के समक्ष लेखक ने सरल सुबोध भाषा में रखा है। जिस के लिए वे बधाई के पात्र हैं। शास्त्रीय चर्चा को अभिनव रूप में प्रस्तुत करने में लेखक सफल हुए हैं।
- भंवरलाल जैन न्यायतीर्थ, जयपुर
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