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स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ
“मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास" पुस्तक से पढ़कर हृदय गद-गद हुआ। बड़े मनोयोग से चिन्तनपूर्वक पुस्तक लिखी है। मानों में एक उपन्यास पढ़ रहा हूं।
- डाः राजाराम जैन
“मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास" पुस्तक पढ़कर यह अनुभूति हुई कि सदक्रियाओं से मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास होता है। इसमें दो मत नहीं हैं।
- जिनेश मुनि
श्री चौरड़ियाजी ने इस विषय में जो परिश्रम किया है वह धन्यवाद के पात्र हैं । यह ग्रंथ इसके पूर्व प्रकाशित लेश्या-कोश, क्रियाकोश की कोटि का ही है। इन ग्रंथों में श्री चोरड़ियाजी का सहकार था। हमें आशा है कि वे आगे भी इस कोटि के ग्रंथ देते रहेंगे। विशेषता यह है कि आगमों में जितने भी अवतरण इस विषय में उपलब्ध थे - उनका संग्रह किया है। इतना ही नहीं आधुनिक काल के ग्रन्थं के भी अवतरण देकर ग्रंथ को संशोधकों के लिए अत्यन्त उपादेय बनाया है इसमें सन्देह नहीं हैं।
- दलसुख मालवणिया, अहमदाबाद
अनुमानतः लेखक ने इस ग्रंथ को लिखने के लिए अनेकानेक ग्रंथों का अवलोकन किया है। टीका भाष्यों के सुंदर संदर्भो से पुस्तक अतीव आकर्षक बनी है।
- मुनिश्री जसकरण, सुजानगढ
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