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स्व: मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रन्थ
लेखक की यह कृति पाठकों का ध्यान एक नई दिशा की ओर खींचती है। शास्त्र मर्मज्ञ विद्वानों को विविध विषयों पर गहराई से चिन्तन करने की और प्रवृत्त करने में यह पुस्तक सहायक बनेगी।
- डाः नरेन्द्र भगावत, जयपुर
विद्वान लेखक ने यह स्पष्ट करने का साधार प्रयत्न किया है कि मिथ्यात्वी का कब और किस प्रकार विकास हो सकता है। लेखक और प्रकाशक इतने सुन्दर ग्रंथ के प्रकाशन के लिए बधाई के पात्र हैं।
- डाः भागचन्द जैन, नागपुर
प्रायः यह समझा जाता है कि मिथ्यात्वी व्यक्ति धर्माचरण का अधिकारी नहीं है और उसका आध्यात्मिक विकास नहीं हो सकता । भ्रान्ति का निरसन विद्वान लेखक ने सरल-सुबोध किन्तु विवेचनात्मक शैली में और अनेक शास्त्रीय प्रमाणो से पुष्टिपूर्वक किया
है ।
- डाः ज्योतिप्रसाद जैन, लखनऊ
"मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास” यह पुस्तक अनेक विशिष्टताओं से युक्त है । एक मिथ्यात्वी भी सदअनुष्ठानिक क्रिया से अपना आध्यात्मिक विकास कर सकता है। साम्प्रदायिक मतभेदों की बातें या तो आई ही नहीं है अथवा भिन्न भिन्न दृष्टिकोणो का समभाव से उल्लेख कर दिया गया है। श्री चोरड़ियाजी ने विषय का प्रतिपादन बहुत ही सुन्दर और तत्स्पर्शी ढंग से किया है। विद्वज्जन इसका मूल्यांकन करें। निःसन्देह दार्शनिक जगत के लिए चोरड़ियाजी की यह अप्रतिभ देन है ।
ग्लोरी ऑफ इण्डिया, दिल्ली
Jain Education International 2010_03
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