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आज विश्व में संबंध-सुधार की चर्चा के स्वर सुनाई दे रहे हैं । अनेकांतमय जीवन-शैली मानवीय सम्बन्धों में आशातीत सुधार कर सकती है । अनेकांत को अपनाने से कलह, झगड़े, विवाद स्वतः शांत हो जाते हैं । खुशियों से दामन भर जाता है। जरूरत है व्यक्ति अनेकांत जीवन के व्यावहारिक पक्ष को प्रतिष्ठित करे और आनन्द को प्राप्त करे ।
अहिंसा
जहां जीवन है, जीवन निर्वाह का प्रसंग है, वहां हिंसा को समूलतः रोक देना शक्य नहीं लगता। फिर भी व्यक्ति सम्यक्दर्शनमय धारा से अनुप्राणित होता है तब वह आवश्यक हिंसा के अल्पीकरण की ओर प्रस्थान करता है। यही पथ अहिंसा के विकास का संप्रेरक है । अनावश्यक हिंसा का परिहार अहिंसा-तत्त्व को संपोषित करने वाला है।
दर्शन दिग्दर्शन
मनुष्य केवल अनिवार्य आवश्यकता के लिए ही नहीं, बल्कि आमोद-प्रमोद, राग - रंग, हास-परिहास और भोग-विलास के लिए अनावश्यक हिंसा से संपृक्त रहता है । अहिंसामय जीवन शैली को आधार मानने वाले व्यक्ति की सोच प्रतिपल हिंसा के अल्पीकरण के सूत्र पर स्थिर रहती है । वह आवश्यक हिंसा से बचने का हर संभव प्रयास करता है।
अहिंसा करूणामय चित्त की समुज्ज्वल भावधारा है। क्रूरता को आवश्यक हिंसा की जननी माना है । भ्रूणहत्या, पर-हत्या, यह सब क्रूरता का ही परिणाम है । अहिंसामय जीवन शैली का संपालक व्यक्ति पर - हत्या की और कभी भी उत्प्रेरित नहीं हो सकता। अगर आज विश्व अहिंसामय जीवन शैली की और चरणन्यास करे तो समूची मानव जाति को संत्रस्त करने वाला आतंकवाद अपनी मौत मर सकता है। जरूरत है व्यक्ति के वैचारिक धरातल पर अहिंसा के संस्कार पुष्ट बने तब पारिवारिक एवं सामाजिक अनेक विषमताओं का स्वतः समाधान हो जायेगा । अहिंसा व्यक्ति की मानवीय संवेदना को बढ़ाती है । मैत्री का विकास करती है।
आज प्रदूषण का खतरा दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है । पर्यावरण की शुद्धि में भी अहिंसा की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है । अहिंसामय व्यक्तित्व मिट्टी, पानी एवं वनस्पति का अनावश्यक उपयोग नहीं करता । अनावश्यक भूमि - दोहन, खनन की रोकथाम से ही पर्यावरण को प्रदूषण से बचाया जा सकता है। अहिंसामय जीवन शैली अनेक समस्याओं का कारगर समाधान है।
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