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स्व:मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ
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सीमा के अतिक्रमण का परिणाम
अध्यात्म के आचार्यों ने एक दूसरा रास्ता भी दिखाया । केवल विचार का विकास ही मत करो। एक सीमा के बाद विचार का संयम करना भी सीखें। यह बहुत आवश्यक है। समस्या यह है विचार का संयम नहीं हुआ, ब्रेक लगाने की बात कहीं भी नहीं आयी। परिणामस्वरूप विचार इतना आगे बढ़ गया कि वह आज आदमी को भटका रहा हैं। ब्रह्मचर्य का उदाहरण लें। मनोविज्ञान की भाषा में सैक्स आदमी की एक मौलिक मनोवृत्ति है। यह प्रत्येक प्राणी में होती है। आदमी ने विचार की दृष्टि से इसका विकास किया और यहां तक विकास किया कि मुक्त यौनाचार की बात कही जा रही है। सैक्स पर बहुत पहले से ही चिंतन चला आ रहा है। समय-समय पर अलग-अलग धाराणाएं आई और आज चिंतन मुक्त यौनाचार तक पहुंच गया। सीमा को लांघने के परिणाम भी सामने आने शुरू हो गये हैं। भयंकरतम बीमारी तक आदमी पहुंच गया है। आंखे खुल रही हैं और सोचा जा रहा है कि इस पर अंकुश होना चाहिए, कोई नियंत्रण होना चाहिए। नया मार्ग
आदिमकाल में जब आदमी डरा होगा तभी उसने शस्त्र बनाए होंगे। पत्थर युग में पत्थर के हथियार और लाठी, तीर, कमान आदि बनाए। गोली, बारूद से होते हुए आज वह मिसाइल तक पहुंचा है। जैसे-जैसे विचार का विकास हुआ, वैसे-वैसे पदार्थ का भी विकास होता गया। दोनों साथ-साथ चले है। इस समस्या को ध्यान में रखकर एक नया मार्ग खोजा गया। विचार मनुष्य की एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। चिंतन की क्षमता मनुष्य की एक बड़ी विशेषता है। किन्तु चिंतन को कितना आगे बढ़ाएं, इसकी भी एक सीमा होनी चाहिए, एक नियंत्रण और अंकुश होना चाहिए। जो विचार मानव जाति के लिए हितकर
और कल्याणकारी हैं, वे ही विचार आगे बढ़े और वे भी जैसे ही अनिष्टकारी या अहितकर होने लगें, वहीं उन पर ब्रेक लग जाए। प्रश्न विचार की शक्ति का
___ कल्याणकारी विचार भी निरंकुश रूप में आगे बढ़े। उन पर भी नियत्रंण होना चाहिए। इसके बाद भुमिका बनती है निर्विचार अवस्था की। मनुष्य के विकास की पहली अवस्था है विचार । उसके बाद की अवस्था है निर्विचार । निर्विचार होने का मतलब विचारशून्य होना नहीं है। किन्तु एक सीमा पर विचार को बन्द कर अपनी अतीन्द्रिय
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