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दर्शन दिग्दर्शन
पदार्थ की स्मृति आती है तो विचार का सिलसिला शुरू हो जाता है। पदार्थ के साथ व्यक्ति के स्वार्थ भी जुड़ गए हैं, भावनाएं भी जुड़ी हुई हैं और वे भावनाएं अलग-अलग ढंग से व्यक्ति को सोचने के लिए विवश करती हैं। समस्या पिता की
____ एक आदमी ने अपने दो बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाई। एक दिन वह चिंता की अवस्था में बैठा था। एक मित्र ने पूछा - तुम आज इतने चिंतित क्यों हो? वह बोला - "मुझे एक उलझन हो गयी है।" मित्र ने पूछा - उलझन किस बात की ? क्या नौकरी से संबंधित कोई विवाद खड़ा हो गया ? दोनों लड़कों ने कोई समस्या खड़ी कर दी ? या स्वास्थ्य संबंधी कोई परेशानी है ? उसने कहा - ऐसा कुछ भी नहीं है। दो लड़कों में से एक को डाक्टर बना दिया। दूसरे को वकील। दोनों का अच्छा काम चल रहा है। कुछ दिन पहले एक मोटर दुर्घटना में मेरे पैर में थोड़ी-सी चोट आ गयी। डाक्टर लड़का कहता है इसका जल्दी उपचार करा लें, अन्यथा घाव बढ़ जायेगा। वकील लड़का कहता है - जल्दबाजी न करें। जख्म बढ़ने दें, उसके बाद मैं अदालत में दावा कर हर्जाने की मोटी रकम वसूलूंगा। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि किसका कहा मानूं। स्रोत कहां है ?
इन दो तरह के विचारों का स्रोत कहां से आ रहा है ? निश्चय ही इनके मूल में स्वार्थ है। दोनों ही विचार स्वार्थ से जुड़े हैं। पदार्थ के साथ स्वार्थ के साथ विचार अनुबंधित हैं।
__स्वार्थ के साथ विचार अनुबंधित हैं। हमारे विचार की इतनी प्रणालियां, पद्धतियां बन गई कि उन सबके पीछे पदार्थ जुड़ा है। दार्शनिक जगत में इस पर बहुत चिंतन हुआ है। औद्योगिक और सामाजिक क्षेत्र में भी विचारों का बहुत विकास हुआ है। क्या केवल इनका विकास ही करते जाना है ? नहीं, हमें संयम भी करना होगा। केवल विचार का विकास मान्य नहीं है। एक सीमा तक ही विकास की बात मान्य है। उससे आगे विचार का संयम भी मान्य करना होगा। केवल विचार के विकास से समाज कहां चला जायेगा, कहा नहीं जा सकता।
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