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स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ
अमंगल विचार न आएं
अमंगल विचार, नितान्त स्वार्थपरक विचार, दूसरे का अनिष्ट करने वाले विचार आते हैं, उन्हें रोकना है। ध्यान करने वाले व्यक्ति में इस प्रकार की चेतना जागनी चाहिए, जिससे बुरे विचार न आएं। यह ध्यान की पहली सफलता है, बुरे विचारों पर अंकुश लग जाना । जितने निषेधात्मक विचार हैं, बुरे विचार हैं, उनके निकलने का दरवाजा बन्द हो जाए। इस बात के प्रति जागरूक होना है, चित्त की निर्मलता को पाना है। निर्मल चित्त में बुरे विचार प्रस्फुटित ही नहीं होते। अनावश्यक विचार न आएं
दूसरी बात है - अनावश्यक विचार न आएं। विचार का हमें विकास करना है, चिंतन का बहुत आगे बढ़ाना है, चिन्तनशील और विचारशील बनना है। यदि ध्यान करने वाला व्यक्ति चिंतनशील न रहे तो फिर ध्यान के पास कोई नहीं फटकेगा। ध्यान किया और विचार समाप्त हो गया, चिंतन समाप्त हो गया, इसलिए अब दुनिया के किसी काम का नहीं रहा। यदि ऐसा होता है तो कोई ध्यान करने क्यों आएगा? हमें चिंतनशून्य नहीं होना है, विचार से खाली नहीं होना है, किन्तु अनावश्यक विचार से मुक्त होना है। दिनभर जो बिना सिर-पैर के अनावश्यक विचार आते रहते हैं, उन विचारों को रोकना है। वही विचार आएं, जो आवश्यक हैं और हमारे विकास में सहयोगी बन सकें। अनावश्यक विचार मानसिक तनाव पैदा करते हैं, मस्तिष्क को बोझिल बनाते हैं, नींद में बाधा डालते हैं और नींद की गोलियां खाने को विवश करते हैं। बहुत सारे लोग ऐसे हैं, जिनके सो जाने पर भी विचारों का चक्का रूकता नहीं, चलता रहता है। या तो विचार चलेगा या नींद आएगी। दोनों एक साथ नहीं चल सकते। दोनों का छत्तीसी संबंध है। पदार्थ और विचार
ध्यान का प्रयोजन विचार के विकास को रोकना नहीं है, किन्तु विकास के विचार को और अधिक बनाने का है। अनावश्यक विचार आएंगे तो विचार की शक्ति कमजोर पड़ जाएगी, जोचने और चिंतन करने की क्षमता कम हो जाएगी। आवश्यक विचार करेंगे तो हमारी यह क्षमता और अधिक बड़ जायेगी। विचार के क्षेत्र में अनेक समस्याएं हैं। एक समस्या है पदार्थ। पदार्थ और विचार का बहुत गहरा संबंध है। हमारे विचारों का विकास पदार्थ के साथ हुआ है। पदार्थ सामने आते हैं, विचार पैदा होते हैं।
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