________________
स्व: मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रन्थ
-
दूरद्रष्टा एवं दृढ़ संकल्पी
-
-
- श्रमण सागर
राजनगर
भाई देवेन्द्रजी कर्णावट ने दूसरी बार फिर सूचित किया बांठियाजी की स्मृति ग्रंथ में कुछ मैं भी लिखू। स्वास्थ्य के देखते अधिक लिख पाना दुरूह जैसा लगता है। फिर भी केवलचन्द नाहटा ने स्व. मोहनलालजी बांठिया के जीवन पृष्ठ उजागर करने का संकल्प दुहराकर बांठियाजी को पुर्नजीवित करने जैसा बीड़ा उठाया है जो कार्य अब तक कब का ही हो जाना चाहिए था पर 'जागे तभी सबेरा' देर सबेर उस आर्ष ऋषि की याद अतीत को उधेड़कर रख देती है।
___ कहां है वैसा तत्वविद। विश्लेषण का महाभाष्य। आदमी का पारखी। गंभीर उदारचेत्ता। आगम रहस्य का पारगामी। तेरापंथ-दर्शन का सचोट प्रवक्ता । दूरद्रष्टा । संघ का अर्तिगंवेषी। कार्यकर्ताओं का कलेजा। फौलादी चट्टान सा दृढ़ संकल्पी। कठोर अनुशासन का अभ्यासी। कोमल फूल सा स्नेहाद्र। साथियों की प्रमाद चर्चा को अपने पर
ओढ़ लेने वाला। नेतागिरी से दूर। भाषणबाजी से भीत। पाप भीरु । गुरु भक्त । चिन्तक, सतत स्वाध्यायी। अनुप्रेक्षक, निदिध्यासी, स्थित प्रज्ञ अवधारक । सन्तों का दास । अपने आप में मस्त। नवीन शोध संग्रह का उत्सुक। सजग। अनबोला विवेकी। शास्त्रानुमोदित तर्क में सतर्क सजग आत्म संयमी। समालोचना का तुलनात्मक संतुलन। उनसे मैं सीधे सीधे में बहुत कम सम्पर्क में आया, पर जब स्वर्गीय भाईजी महाराज के खुले दरबार में वे विनम्र निवेदन करते, मन करता कुछ जिज्ञासा समाधान को। कोठारी जयचन्दलालजी (लाडनूं) से बांठियाजी के बहुत संस्मरण सुने। पर आंखों से देखा रायपुर 'अग्निपरीक्षा' काण्ड में उनकी कर्तव्य क्षमता को। खंभ ठोक कर बैठ गये बांठियाजी। अदालती प्रसंगों पर जब वे अपने अधिवक्ताओं और न्यायाधीशों में केशराज रचित जैन रामायण (राम-रास) की ढालों के सन्दर्भ गा गाकर सुनाते, एक सभा बंध जाता। उनका
) १३४ (साब
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org