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सुरीला और लम्बा लयबद्ध गायन सुन एक बार न्यायाधीश ने अपने चेम्बर में बुलाकर उनसे पुनः उस प्रसंग को सुनना पसन्द किया ।
अग्नि परीक्षा पुस्तक को प्रतिबन्ध मुक्त करवाकर जब उन्होंने दर्शन किये वन्दनीय भाईजी महाराज ने उनकी पीठ थपथपाई। वाह, वाह, वाह, बांठियाजी वाह । आज वे नहीं हैं, पर उनके वे संस्कार और संस्मरण भावी पीढ़ी में चेतना जगा सकें इसी आशा के साथ ग्रंथ-संयोजक बधाई के पात्र हैं।
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स्मृति का शतदल
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