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स्मृति का शतदल
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एक चमत्कार दृश्यावलोकन
- श्रीचंद चोरड़िया
सं. २०३५ कार्तिक बदी २ वार श्री बुधवार सायं लगभग ७ बजे
मैं वर्धमान जीवन कोश का कार्य स्व. मोहनलाल बांठिया के मकान पर उनके कमरे में दत्तचित्त होकर कर रहा था। बिजली गई हुई थी। मोमबत्ती के प्रकाश में में सम्पादन का कार्य कर रहा था। एक दिव्य आत्मा का आगमन हुआ। आगमन के पूर्व लगभग आठ-दस मिनट के पूर्व झनझनाहट की आवाज होने लगी थी। मैंने उस कार्य को छोड़कर इस आवाज की तरफ ध्यान दे दिया था। कुछ देर बाद पुनः काम में लग गया। फिर पुनः झनझनाहट की आवाज शुरू हुई। मैंने समझा कि ऊपर से कोई आदमी आ रहा होगा। फिर उस काम को छोड़कर उस ओर देखने लगा। फिर पुनः काम में लग गया, लेकिन झनझनाहट की आवाज फिर चालू हुई। फिर मैंने निर्णय लिया कि कोई तो आ रहा है। फिर मैं अनिमेष दृष्टि से देखता रहा। फिर देखा कि आफिस के दरवाजे के बाहर एक देव पुरूष वीरासन में आराम से बैठे हुए हैं। शान्त मुद्रा में आंखें बन्द थीं। मैंने गौर दृष्टि से चिन्तन किया कि ये तो देव पुरूष हैं उनके पैर जमीन पर नहीं टिक रहे हैं। नीचे से देखना शुरू किया धोती पहनी हुई थी। इन सबके देखने के बाद भी पूरा निर्णय नहीं कर सका था, ऊहापोह चल रही थी। फिर थोड़ा अपना मुंह ऊंचा करके उनकी तरफ झांका तो स्व. मोहनलालजी बांठिया कुरता पहने हुये दिखाई दिये।
जब वे बैठे हुए दिखाई दिये उस समय मेरे साथ आगम कोष के कार्यो के समय की व्यवस्था थी। जाते समय जो अवस्था थी वह हमलोगों के बाहर जाने जैसी अवस्था थी। मैंने कुर्सी पर बैठे बैठे यह सब घटना देखी। मैंने समझा कि कुछ देर और ठहरेंगे। इस सम्भावना के कारण मैं कुछ नहीं बोला। जाते समय मन के द्वारा उनको कहा कि आपको कुछ कहना चाहिए। वे कुछ नहीं बोले और अन्तर्ध्यान होगये। उल्लेख योग्य है कि जिस समय वे वीरासन - (आराम के आसन) पर बिराजे थे जितनी दूर में वे विराजमान थे उतनी दूर में उन्होंने करीब १५० / २०० पावर बिजली का प्रकाश कर दिया था, चूंकि अंधेरी रात्रि थी।
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