SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८ ] Jain Education International पर जिनके वन्दन भवाताप हितदाह निकन्दन चन्दन हैं । इस आनन्दित - कवि वाणी से वन्दित वे त्रिशलानन्दन हैं ॥ - धन्यकुमार 'सुधेश' आतो जो न आतो जो न विश्व माहिं वीर अवतार लेके । भारत की आरत को कहो कौन हरतो ॥ देतो कौन प्रान दान मूक अविचारियों को । मुनि मानवों में कौन भक्ति भाव भरतो ॥ कौन दर्शातो मुक्ति मारग मही पर आय । कौन को 'सरोज' हिरदे में लाय धरतो ॥ प्रेम को प्रकाश औ अहिंसा को विकास यहां । 'वीर' जो न होतो तो प्रकट कौन करतो ॥ - स्वरूपचन्द्र 'सरोज' वीर का सन्देश विश्व के हित बह रहा हो प्रेम का अविभ्रान्त निर्झर । रोम रोम स्वतन्त्र हो बन्दी न हो जीवन हृदय स्वर ॥ एक्यता समता क्षमा सौहाद्र जागे उत्तरोत्तर । शान्ति जननी शुद्ध हार्दिकता बहे जग में निरन्तर ॥ विश्व रक्षा के लिये अन्तर सदा हो हो धराअभय घोर हिंसा भावना होकर प्रोत्साहित । पराजित ।। आज हिंसा रह गई बुझते प्रदीपों का उजाला । विश्व में होगा अहिंसा सत्य का फिर बोल बाला ॥ फिर बहायेगा निरर्थक रक्त मानव का न मानव । गुञ्जरित होगा अहिंसक 'वीर' के संदेश का रव ॥ जग जलाने के लिये कोई न फिर दीपक जलेगा । अमर - जीवन -दीप जल कर विश्व में तम हर बनेगा ॥ आज हिंसा दानवों के केन्द्र विश्व के हित 'वीर' के सन्देश में भीषण प्रलय हों । जग में विजय हों ॥ - कल्याण कुमार 'शशि' For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy