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________________ कर्म कीर्ति के लिये प्राणि, कुछ कर जाता है। केवल दो क्षण को अंधियारा झर जाता है । शिव समान तुमने पी जग की गरल गागरी । पंकिल काया अनाचार की हुई अधमरी ॥ जब तक है इतिहास, धरा पर नाम तुम्हारा । पावन ही पावन, गायेगी गंगा धारा ॥ संतों की चूडामणि, युग-युग वीर तुम्हारी। पीड़ित मानवता ने, सजल आरती उतरी ॥ -रमेश रंजक' महावीर सन्देश जिसने जग के सब जीवों को, निर्भर जीवन का दान दिया । मिथ्या भ्रम में भटकी जनता को, जिसने अनुपम ज्ञान दिया । खुद जियो, जगत को जीने दो, सुख शांति सुधारस पीने दो । जिसने जग को यह मंत्र दिया, फिर बंधन मुक्त स्वतंत्र किया । उस परम पूज्य परमेश्वर का, सुनलो पावन उपदेश सखे । हिंसा में धर्म नहीं रहता, है यही सुखद सन्देश सखे ॥ जग में हैं जीव समान सभी, दुख से रहते भयवान सभी । सबहीं को प्यारा है जीवन, इसकी रक्षा के हेतु यतन ॥ सबहीं करते हैं बेचारे, सबको अपने बच्चे प्यारे। तुम सब पर करुणा दिखलाओ, तुम विश्व प्रेम को अपनाओ। तुमने यह मानव तन पाया, तुमने सुन्दर जीवन पाया ॥ पर तुम्हें आत्म का ज्ञान नहीं, अपने पर की पहचान नहीं । यदि निश्चल होकर संयम से, आतम का ध्यान लगाओगे ॥ तो निश्चय ही धीरे-धीरे, भगवान स्वयं बन जाओगे। करुणामय का उपदेश यही, है महावीर संदेश यही ॥ --'पुष्पेन्दु' वन्दना जो निन्दक के प्रतिकूल नहीं, जो पूजक के अनुकूल नहीं । जो ठुकराते हैं शूल नहीं, जो अपनाते हैं फूल नहीं ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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