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________________ चिर अतीत के धर्म वीर, उतरो नूतन बन । पुनर्दर्शन से मुखरित हो अभिशापित जन मन ॥ -शिवसिंह चौहान 'गुञ्जन जन-जीवन के भगवान सत्य-अहिंसा के पथदर्शक, जय जन जीवन के भगवान । आज बंदना के स्वर लेकर, करें तुम्हारा हम आह्वान ॥ राष्ट्र-राष्ट्र हिंसक बन कर अब सर्वनाश के हेतु बने। एक तुम्हारे ही इंगितपर, विश्व शान्ति का सेतु बने ॥ धधक रहा है घर का आंगन, लपटें झपट रही विकराल । यौवन जरा भेद नहीं जाने, मृत्यु दे रही निर्भय ताल ॥ नारी का सौन्दर्य शाप बन, आज दे रहा पाप महान । कौन-किसी की लज्जारख ले. कौन अभयता का दे दान॥ तुम्ही एक थे सच्चे स्वामी, सच्चे सेवक जन जन के। आज अंधेरी काल रात्रि में, तुम्ही दीप हो मन मन के । गांधी सा अनुगामी तेरा, ईसा जैसा शिष्य पुनीत ॥ प्राण गंवा कर भी जिनने, अंतिम सांसों तक गाये गीत । तूने भेद भाव की उठती, दीवारों को गिरा दिया । ऊँच-नीच का भेद हटाकर, दानवता को हिलादिया । "करुणा-शान्ति विश्व की रक्षक", कहकर मंत्र बताया एक । जन जन को स्वातन्त्र्य दिलाकर, रखली मानवता की टेक ॥ सुलगाती हैं आज शक्तियाँ, महानाश की ज्वालाएँ। किन्तु तुम्हारी शक्ति महा प्रभु, मिटा रही भव बाधाएं ॥ आज तुम्हारी स्मृति लेकर हम, सोच रहे हैं विधि तत्काल । कैसे हिंसा की हिंसा कर, मेटें भव भव के जंजाल ॥ तुम न हुए होते तो स्वामी, मानव दानव बन जाता। तुम न हुए होते स्वामी, विश्व नर्क ही बन जाता ॥ आज तुम्हारे ही कारण तो जीवन जीवन कहलाता । आज तुम्हारा ही प्रकाश, तम भरे मार्ग है दिखलाता ॥ मानवता लौटेगी फिर से, महावीर स्वामी आओ। वसुधा को कुटुम्ब कर डालो, अपनी करुणा बरसाओ ॥ -'मुकुल' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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