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________________ २८ ] भगवान महावीर के चरणों में हे ज्योतिपुंज जयवीर ! सत्य का ज्ञाता दृष्टा तू । हे महाप्राण ! भूच्छित जनमन का जीवन-सृष्टा तू ॥ हे जिन ! प्रभात तू सघन तमस् से घिरती संसृतिका । हे निर्विकार ! परिशोधक मानवता की संस्कृति का ॥ तूने अपने अन्तरतम का सोया देव जगाया। तूने नर से नारायण तक अपने को पहुंचाया ॥ सीमित नरतन में असीम की ज्ञानचेतना जागी। जन्म जन्म की धूमिल कलुषित मोह-चेतना जागी॥ तेरी वाणी जगकल्याणी, प्रखर सत्य की धारा । खण्ड खण्ड हो गई दम्भ की, अन्धाग्रह की कारा ॥ 'सत्य एक हैं' उस पर, तेरे मेरे का क्या अंकन । विश्व समन्वय कर देता है, तेरा यह उद्बोधन ॥ तू उन अन्धों की आंख, भटकते ठोकर खाते जो। तू उन अबलों की लाठी, प्रताड़ित अश्रु बहाते जो॥ मानवता के महामन्त्र का जो दाता, तू गुरुवर है। अस्तंगत जो कभी न होगा, ऐसा तू दिनकर है। जाति-पंथ-भेदों से ऊपर, तू सबका सब तेरे। देशकाल वह कौन तुझे, जो सीमाओं में घेरे ॥ तू अनन्त है, अजर अमर है तेरा जीवन दर्शन । अखिल विश्व का तव चरणों में हो निर्वाणगामी वन्दन ॥ -उपाध्याय अमर मुनि स्तुति प्रणमों वीर जिनेन्द्र को, चरन कमल शिरनाय । विघन हरन मंगल करन, आनन्द मोद बढ़ाय ॥ गुण अनन्त भगवन्त नमस्ते, शुद्ध चिदातम ज्ञान नमस्ते ॥ अविनाशी अविकार नमस्ते । ज्योति अखंड स्वरूप नमस्ते ॥ निर्मल निर्मद धीर नमस्ते। पूरन ब्रह्म स्वरूप नमस्ते ॥ राग द्वष परिहार नमस्ते । काम भोग परिहार नमस्ते ॥ मेरु अचल सम धीर नमस्ते । उदधि समान गंभीर नमस्ते ॥ मोह रहित भगवन्त नमस्ते । माया मत्सर त्याग नमस्ते ॥ ज्ञान खड्ग धर धीर नमस्ते । मारग धर्म प्रकाश नमस्ते ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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