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________________ प्रेम विवश हो अवश मैं, नाथ करूं गुण गान ॥ तुम गुण महिमा अगम है, पावन पतित सुजान ॥ -श्रीलाल पंडित प्रार्थना सुध्यान में लवलीन हो, जब घातिया चारो हने, सर्वज्ञ बोध विरागताको, पा लिया तब आप ने। उपदेश दे हितकर अनेकों भव्य, निज सम कर लिये, रवि ज्ञान किरण प्रकाश डालो, वीर! मेरे भी हिये ॥ -मक्खनलाल न्यायाचार्य महावीर प्रार्थना महावीर प्रभु के चरणों में, श्रद्धा के कुसुम चढ़ायें हम। उनके आदर्शों को अपना, जीवन की ज्योति जगायें हम ॥महावीर०॥ तप सयम मय शुभ साधन से, आराध्य चरण आराधन से । बन मुक्त विकारों से सहसा, अब आत्म विजय कर पायें हम ॥महावीर० १॥ दृढ़ निष्ठा नियम निभाने में, हो प्राण बलि प्रण पाने में । मजबूत मनोबल हो ऐसा, कायरता कभी न लायें हम ॥महावीर० २॥ यश लोलुपता पद लोलुपता, न सताये कभी विकार व्यथा। निष्काम स्वपर कल्याण काम, जीवन अर्पण कर पायें हम ॥महावीर० ३॥ गुरुदेव शरण में लीन रहें, निर्भीक धर्म की बाट बहें। अविचल दिल सत्य अहिंसा का, दुनियां को सुपथ दिखायें हम ॥महावीर०४॥ प्राणी प्राणी सह मंत्री सझें, ईर्ष्या मत्सर अभिमान तजें। कहनी करनी इकसार बना, 'तुलसी' तेरा पथ पायें हम ॥महावीर० ५॥ -आचार्य तुलसी गणि जय गान शिव पथ परिचायक जय हे सन्मति युग निर्माता ! गंगा कल-कल स्वर से गाती तव गुण गौरव गाथा । सुरनर किन्नर तव पद-युग में नितनत करते माथा । हम भी तव यश गाते, सादर शीश झुकाते, हे सद् Ex बुद्धि प्रदाता, दुख हारक सुखदायक जयहे ! सन्मति युग निर्माता जय हे ! जय हे ! जय हे ! जय जय-जय जय हे ॥१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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