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"सद्धर्म का सन्देशा" प्रत्येक नारी नर में। सर्वस्व भी लगाकर फैला दो विश्व भर में ॥
-नाथूराम 'प्रेमी वीर वाणी अखिल जग तारन को जल-यान । प्रकटी, वीर, तुम्हारी वाणी, जगमें सुधा समान ॥ अनेकान्तमग, स्यात्पद-लांछित, नीति-न्याय की खान । सब कुवाद का मूल नाशकर, फैलाती सत् ज्ञान ॥ नित्य अनित्य-अनेकएक इत्यादिक वादि महान । नत मस्तक हो जाते सन्मुख, छोड़ सकल अभिमान ॥ जीव-अजीवतत्त्व निर्णयकर, करती संशय-हान साम्य भाव रस चखते हैं जो,
करते इसका पान ॥ ऊँच, नीच औ लघु-सुदीर्घ का, भेद न कर भगवान । सबके हित की चिन्ता करती, सब पर दृष्टि समान ॥ अन्धी श्रद्धा का विरोध कर, हरती सब अज्ञान । युक्तिवाद का पाठ पढ़ाकर, कर देती सज्ञान ॥ ईश न जगकर्ता, फलदाता, स्वयं सृष्टि-निर्माण । निज उत्थान-पतन निज कर में, करती यों सुविधान ॥ हृदय बनाती उच्च, सिखा कर, धर्म सुदया-प्रधान । जो नित समझ आदरें इसको, 'वे युगवीर' महान ॥
-जुगलकिशोर 'युगवीर'
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