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जन्म सफल भयो आज, पूरे सब समानकाज। पायो सब सुख समाज, जै-जै जिन राई ॥टेक॥ इन्द्रादिक सुगुन गाय, चरणों में शीस नाय । कार्तिक बदि मावसको, “कुमुद" मुक्तिपाई ॥टेक॥
-कुमुद
भजन सब मिलके आज जय कहो श्री वीर प्रभु की।
____ मस्तक झुका के जय कहो श्री वीर प्रभु की ॥१॥ विघ्नों का नाश होता है, लेने से नाम के।
___ माला सदा जपते रहो श्री वीर प्रभु की ॥२॥ ज्ञानी बनो दानी बनो बलवान भी बनो।
___अकलंक सम बन जय कहो, श्री वीर प्रभु की ॥३॥ होकर स्वतन्त्र धर्म की रक्षा सदा करो।।
निर्भय बनो अरु जय कहो, श्री वीर प्रभु की ॥४॥ तुमको अगर मोक्ष की इच्छा हुई है "दास" । उस वाणी पर श्रद्धा करो, श्री वीर प्रभु की ॥५॥
-न्यामतसिंह 'दास' सद्धर्म-सन्देश मन्दाकिनी दया की जिसने यहाँ बहाई । हिंसा कठोरता की कीचड़ भी धो भगाई ॥ समता सुमित्रता का ऐसा अमृत पिलाया। द्वषादि रोग भागे मद का पता न पाया ॥ उस ही महान प्रभु के तुम हो सभी उपासक । उस वीर वीर-जिनके सद्धर्म के सुधारक ॥ अतएव तुम भी वैसे बनने का ध्यान रक्खो। आदर्श भी उसी का आँखों के आगे रक्खो॥ सन्तुष्टि शान्ति सच्ची होती है ऐसी जिससे । एहिक क्षुधा पिपासा रहती है फिर न जिससे ॥ वह है प्रसाद प्रभु का पुस्तक स्वरूप उसको। सुख चाहते सभी हैं, चखने चाहे दो जिसको ॥ कर्तव्य का समय है निश्चिन्त हो न बैठो। थोड़ी बड़ाइओं में मदमत्त हो न ऐंठो ॥
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