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________________ Jain Education International पावापुरतें मोक्ष सिधारे, कार्तिक वदि मावस सुखकारे । अष्ट कर्म रिपु वंश उजारे, काल अनंत ते जीजिए || महावीर० ॥४॥ वह दिन आज भयो सुखकारी, आनंद भयो सकल नरनारी । लाडू से करि पूजा थारी, 'चम्पा' निज रस पीजिए || महावीर० ॥ ५॥ - चम्पादेवी स्तुति सिद्धारथ ताता जग विख्याता, त्रिसला देवी माय । तिहाँ जग गुरु जनम्या, सब दुख विनस्या, महावीर जिनराय ॥ प्रभु केइ दीक्षा, परहित शिक्षा, देइ संबत्सरी दान । बहु कर्म खपेवा, शिव सुख लेवा, कीधा तप शुभ ध्यान ॥१॥ वर केवल पामी, अन्तरयामी, वदि कार्तिक शुभ दीस । अमावस जाते, पिछली राते, मुक्ति गया जगदीश ॥ वलि गौतम गणधर, मोटा मुनिवर, पाम्या पंचम ज्ञान । भया तत्त्व प्रकाशी, शील विलासी, पहुता मुक्ति निदान ॥ २ ॥ सुरपति संचारिया, रतन उघरिया, रात थई तिहाँ काली । जन दीवा कीधा, कारज सीधा, थइ निशा उजवाली || सहु लोके हरखी, नजरे निरखी, कियो परब दीवाली । बलि भोजन भगते, निज निज शकते, जीमे सेव सुहाली ॥३॥ सिद्धाका देवी, विघन हरेवी, वांछित दे निरधारी । करे संघमा शाता, जिम जगमाता, एहवी शक्ति अपारी ॥ जिन गुण इम गावें, शिव सुख पावे, सुन ज्यों भविजन प्राणी । 'जिनचन्द्र यतीश्वर', महामुनीश्वर, जपे एहवी वाणी ॥४॥ -- जिनचंद यति प्रभाती सन्मति प्रभु दरश करत, हरष उर न माई ॥ टेक ॥ पावापुर शुभ स्थान, आये सुरगण महान । पूजे बहु हर्षमान, परम प्रीति लाई ॥ टेक ॥। अष्ट द्रव्य ले उदार, कंचन मय पूर्ण थार । मुख से जयजय उचार, चरनन चित्त लाई ॥ टेक ॥ आयो प्रभु तुम द्वार करता तुमसे पुकार । करो भव सिन्धु पार, तुम्हीं हो सहाई ॥ टेक ॥ For Private & Personal Use Only [ २५ www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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