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________________ जय जय जय त्रैलोक्यकाण्डशोभि शिखामणे । नुव नुद नुद स्वान्तध्वान्तं जगत्कमलार्क नः॥ नय नय नय स्वामिन् शान्तिं नितान्तमनन्ति मां । नहि नहि नहि त्राता लौकैकमित्र भवत्परः ॥ चित्ते मुखे शिरसि पाणिपयोज युग्मे । भक्तिं स्तुति विनति मज्जलिमज्जसैव ॥ चेक्रीयते चरिकरीति चरीकरोति । यश्चर्करोति तव देव स एव धन्यः ॥ पद्मवनदीपिकाकुल विविधद म खण्डमण्डिते रम्ये । पावानगरोद्याने व्युत्सर्गेण स्थितः स मुनिः ॥ कार्तिक कृष्णास्यान्ते स्वातावृक्षे निहत्य कर्मरजः । अवशेषं संप्रापद्व्यजरामरमक्षयं सौख्यम् ॥ पावापुरस्य बहिरून्नतभूमिदेशे, पद्मोत्पलाकुलवतां सरसां हि मध्ये । श्रीवर्द्ध मानजिनदेव इति प्रतीतो, निर्वाणमाप भगवान्प्रविधूतपाप्मा ॥ अरुण चरण युगल देवराज इन्द्र के मुकुट में दैदीप्यमान चूडामणि रत्न की आभा से और भी शोभायमान हो रहे हैं, सदा जयशील हों ! हे भगवान ! आप त्रिलोक के अत्यन्त सुशोभित शिखामणि हैं, अत: आपकी जय हो, जय हो, जय हो। हे प्रभो! आप जगत रूपी कमल को खिलाने वाले सूर्य हो, अत: मेरे हृदय के मोहांधकार को दूर कीजिए। हे स्वामिन ! मुझे कभी समाप्त न होने वाली अत्यन्त शान्ति दीजिए। हे भव्य जीवों के अद्वितीय मित्र आप के सिवा मेरी रक्षा करने वाला अन्य कोई नहीं है, नहीं है, नहीं है। हे देव ! जो व्यक्ति अपने हृदय में आप की भक्ति रखता है, मुख से आपकी स्तुति करता है, मस्तक से आपको नमस्कार करता है और अपने हस्त कमलों को बार-बार आपके सन्मुख जोड़ता है, वह इस लोक में अत्यन्त धन्य है। आप कमलों से भरे हुए सरोवर तथा नाना प्रकार के वक्ष समूह से सुशोभित, पावानगर के अत्यन्त मनोहर उद्यान में पहुंचकर कायोत्सर्ग से विराजमान हुए और कार्तिक कृष्ण अमावस्या के प्रात:काल, स्वाति-नक्षत्र में, समस्त अवशिष्ट कर्मों से मुक्ति पाकर आपने जन्म-जरा-मरण आदि दुखों से रहित अविनाशीक अक्षय सौख्य प्राप्त किया। इस प्रकार पावापुर के बाहर, सूर्य विकासी एवं चन्द्र विकासी कमलों के सरोवरों के मध्य, उन्नत भूमि (ऊचे स्थान) पर, केवल ज्ञान लक्ष्मी के स्वामी, समस्त पापों का नाश करने वाले, सर्वप्रसिद्ध भगवान वर्द्धमान जिनेन्द्र ने निर्वाण लाभ किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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