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________________ इत्येवं मगवति वर्धमान चंद्र, ___यः स्तोत्रं पठति सुसंध्ययो योहि । सोऽनंतं परमसुखं नृदेवलोके, भुक्त्वांते शिवपदमक्षयं प्रयाति ॥ -पूज्यपादाचार्यः जयत्यनन्त संसार पारावारकसेतवः । महावीराहतः पूताश्चरणाम्बुजरेणवः ॥ -अल्तेम शि० ले० (५४२ ई०) विशाला जननी यस्य विशालं कुलमेव च । विशालं वचनं चास्य तेन वैशालिको जिनः॥ -सूत्रकृतांग टीका सन्मतिर्महतिर्वीरो महावीरोऽन्त्य काश्यपः । नाथान्वयो वर्धमानो यत्तीर्थ मिह साम्प्रतम् ॥ -धनञ्जयः सुप्रभातं जिनेन्द्रस्य वीरः कमललोचनः । येन कर्माटवी दग्धा शुक्लध्यानोग्रवन्हिना ॥ -सुप्रभातस्तोत्र त्वया नाथ जगत्सुप्तं महामोह निशागतम् । ज्ञानभास्कर बिम्बेन बोधितं पुरतेजसा ॥ जो भव्य जीव प्रातःकाल और सायंकाल दोनों समय वर्धमान मगवान महावीर स्वामी के इस स्तोत्र का भक्तिपूर्वक पाठ करता है, वह मनुष्यलोक और देवलोक के परम सुखों का उपभोग करते हुए अन्त में मोक्ष रूपी अक्षय सौरख्यधाम को प्राप्त होता है। जो अनन्त पारावार संसार को पार करने के लिए एक मात्र सेतु हैं, ऐसे अर्हत् महावीर के चरणरूपी कमलों की रज जयवन्त हो। जिनकी जननी का नाम विशाला था, जिनका कुल भी विशाल (उच्च) था, जिनके वचन बिशालाशय थे, ऐसे यह वैशालिक (उपनाम धारी) महावीर जिन थे। जिनका वर्तमान में धर्मतीर्थ चल रहा है वह सन्मति वीर, महतिवीर, महावीर, काश्यप, नाथान्वयी, भगवान वर्धमान हैं। जिन कमल-लोचन भगवान महावीर जिनेन्द्र ने शुक्लध्यान रूपी प्रचंड अग्नि के द्वारा कम रूपी वन को भस्म कर दिया है (उनके प्रसाद से मेरा) सुप्रभात हो । हे वीरनाथ ! महामोह रूपी निशा के मध्य सोये पड़े इस संसार को आपने अपने अमित तेजपूर्ण ज्ञान सूर्य द्वारा जगाया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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