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________________ णमिऊण जिणंवीरं अणंत वर णाणदंसण सहावं -कुन्दकुन्दाचार्य इमम्मि अवसप्पिणीए चउत्थ समयस्स पच्छिमे भाए, आहुट्ठ मासहीणे वास चउक्कमिसेसकम्मि, पावाए णयरीए, कत्तियमासस्स किण्हचउद्दसिए रत्तीए, सादीए नक्खते, पच्चूसे, भयवदो महदिमहावीरो वड्ढमाणो सिद्धिगदो, तिसुविलोएसु भवणवासिय वाण वितर जोयिसिय कप्पवासियत्ति चउव्विहा देवा सपरिवारा दिव्वेण गंधेण, दिव्वेण पुप्फेण, दिव्वेण धूवेण, दिव्वेण चुण्णण, दिव्वेण वासेण, दिव्वेण पहाणेण, णिच्चकालं अच्चंति, पूजंति, वंदति, णमंसंति, परिणिव्वाण महाकल्लाणपुज्जं अंचेमि पूजेमि वंदामि गंमंसामि, दुक्खखओ, कम्मखओ, बोहिलाहो, सुगइगमणं, समाहिमरणं, जिणगुण संपत्ति होउ मज्झं ॥ -निर्वाण भक्ति णाणं सरणं मे दंसणं च सरणं च चरियं सरणंच । तवसंजमं च सरणं भगवं सरणं महावीरो॥ -मूलाचार सो णाम महावीरो जो रज्जं पयहिऊण पब्बइयो । काम-कोह-महासत्तुपक्ख निग्घायणं कुणइ ॥ -अनुयोगद्वार सूत्र अनन्त और उत्कृष्ट ज्ञान-दर्शन स्वभाव से युक्त महावीर जिनेन्द्र को नमस्कार हो। वर्तमान अवसर्पिणी के चौथेकाल के अंतिम भाग में-उसके अन्त में साढ़े तीन मास कम चार वर्ष-शेष रह जाने पर-पावानगरी में कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि के प्रत्यूषकाल (पिछले पहर) में, स्वाति नक्षत्र में भगवत महति-महावीर वर्द्धमान ने सिद्धि (निर्वाण) प्राप्त किया था। उस उपलक्ष्य में त्रिलोक में निवास करने वाले भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और कल्पवासी, चतुनिकाय के देवों ने सपरिवार दिव्य गंध, दिव्य पुष्प, दिव्य धूप, दिव्य चर्ण, दिव्य न्हवन-प्रक्षालन (अंगोक्षना) द्वारा निरंतर अर्चा की, पूजा की, वंदना की, नमस्कार किया और परिनिर्वाण महाकल्याण पूजा की थी। मैं भी नित्यकाल वही अर्चा-पूजा-वन्दना-नमस्कार करता हूँ। इसके फलस्वरूप मेरे दु:खों का क्षय हो, कर्मो का क्षय हो, मुझे बोधि (रत्नत्रय) की प्राप्ति हो, सुगति में गमन हो, समाधिमरण हो, और मुझे जिनेन्द्र भगवान के गुणों की प्राप्ति हो। (हमारे लिए) ज्ञान शरण है, दर्शन शरण है, चारित्र शरण है, तप और संयम शरण हैं तथा (सर्वोपरि) भगवान महावीर शरण हैं। उन्हीं का नाम महावीर है जिन्होंने समस्त राज्य वैभव का परित्याग करके प्रव्रज्या (दीक्षा) ली और काम-क्रोध आदि महान शत्रुओं के पक्ष का निग्रह किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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