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________________ ४] जयइ जगजीव जोणी वियाणओ जगगुरु जगाणन्दो । जगणाहो जगबन्धू जयइ जगप्पियामहोऽभयवं ॥ जयइ सुयाणयभवो, तित्थयराणं अपच्छिमो जयइ । जय गुरुलोयाणं, जयइ महप्पा महावीरो ॥ भद्द सव्वजगुज्जोयगस्स, भद्द जिणस्स भद्द सुरासुर नमसियस्स, भद्द वीरस्स । धुयरयस्स ॥ - नन्दी सूत्र से सव्वदसी अभिभूयनाणी निरामगंधे धिइयं ठिया । अणुत्तरे सव्वजगंति विज्जं, गंथातीते अभए अणाऊ ॥ से भूपणे अणि अचारी, ओहंतरे धीरे अनंत चक्खू । अणुत्तरे तपइ सुरिए वा, वइरोर्याणदे व तमं पगासे ॥ थणियं व सद्दाण अणुत्तरे उ, चन्दोव्व ताराण महाणुभावे । गन्धेसु वा चन्दणमाह सेट्ठ, एवं मुणीणं अपडिन्तमाहु || जोहेसु णाए जह वीससेण, पुष्फेसु वा जह अरविंद माहु । खत्तीण सेट्ठे जह दंतवक्के, इसीण सेट्ठे तह वद्धमाणे ॥ - सूयगडांग चराचर जगत (समस्त जीव योनियों) के ज्ञाता, जगत्गुरु, जगत् को आनन्द देने वाले, जगन्नाथ, जगत् बन्धु, जगत्-पितामह, अभयरूप, द्वादशाङ्ग श्रुत के जनक, अपश्चिम [अंतिम] तीर्थंकर, लोकगुरु, महात्मा भगवान महावीर की जय हो । Jain Education International समस्त विश्व को ( अपने ज्ञानालोक से ) प्रकाशित करने वाले, रागद्वेष के विजेता, महान वीर, देवों और असुरों द्वारा अभिवन्दित, कर्ममल से रहित, भगवान महावीर हमारा ( समस्त लोक ) का भद्र या कल्याण करने वाले हैं । दृष्टा थे, काम, क्रोधादि अन्तरंग : शत्रुओं को जीतकर पालन करते थे, अटल वीर पुरुष थे, अपने आत्म अध्यात्मविद्या के पारगामी थे, समस्त परिग्रहों के भगवान महावीर सब पदार्थों के ज्ञाता एवं वे केवलज्ञानी बने थे, वे निर्दोष चरित्र का स्वरूप में स्थिर थे, सारे जगत में सर्वोत्कृष्ट त्यागी, निर्भय, मृत्युञ्जयी एवं अजर अमर थे । उनकी प्रज्ञा विश्वमंगलकारी थी, वे अप्रतिबद्ध विहारी थे, संसार सागर को पार करने वाले थे, उपसर्ग परिषहों को सहने में धीर, अनन्त पदार्थों के साक्षात् दृष्टा, ज्ञाता, सूर्यसम उत्कृष्ट तेजस्वी, वैरोचन अग्नि के समान अज्ञानान्धकार नष्ट कर ज्ञान के प्रकाशक थे 1 जिस प्रकार शब्दों में मेघगर्जना का शब्द अनुपम है, तारामण्डल में चन्द्र महाप्रभावशाली है, सुगन्धित पदार्थों में बावना चंदन श्रेष्ठ है, उसी प्रकार भूमण्डल के समस्त मुनियों में इहलोक - परलोक की वासना से सर्वथा मुक्त यह महावीर श्रेष्ठ थे जिस प्रकार वीर योद्धाओं में वासुदेव महान हैं, फूलों में अरविन्द कमल महान है, क्षत्रियों में चक्र - वर्ती महान है, उसी प्रकार ऋषियों में श्री वर्द्धमान भगवान महावीर सबसे महान थे । । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012057
Book TitleBhagavana Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherMahavir Nirvan Samiti Lakhnou
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size16 MB
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